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अक्रिस्टलीय ठोस क्या होते हैं? परिभाषा, लक्षण, उदाहरण और उपयोग – Amorphous Solids in Hindi

अक्रिस्टलीय ठोस (Amorphous Solids):-



वे ठोस जिनमें कणों की कोई निश्चित एवं नियमित व्यवस्था नहीं होती है अर्थात् अवयवी कणों की लघु परासी व्यवस्था (Short range) पायी जाती है, अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।

अक्रिस्टलीय ठोसों के लक्षण

  1. अक्रिस्टलीय ठोसों की निश्चित आकृति नहीं होती है, क्योंकि इनमें कणों की लघु परासी व्यवस्था पायी जाती है।
  2. इनका गलनांक निश्चित (तीक्ष्ण) नहीं होता है एवं इनके शीतलन वक्र सतत् होते हैं।
  3. इन ठोसों को अतिशीतित द्रव (Super cooled liquid) या छद्म ठोस (Pseudo solids) भी कहते हैं, क्योंकि इनमें द्रवों की भाँति प्रवाह की प्रवृत्ति होती है।
  4. इनके पृष्ठ एकसमान तथा समतल नहीं होते हैं।
  5. ये समदैशिक (Isotropic) प्रकृति के होते हैं अर्थात् इनके भौतिक गुण सभी दिशाओं में समान होते हैं।

उदाहरण: ग्लास (काँच), रबड़, प्लास्टिक आदि।

अक्रिस्टलीय ठोसों के उपयोग (Uses of Amorphous Solids)

  1. रबड़ का उपयोग टायर, ट्यूब, जूते के सॉल, खिलौने आदि बनाने में होता है।
  2. अक्रिस्टलीय सिलिका का उपयोग प्रकाश वोल्टीय सेल बनाने में किया जाता है।
  3. काँच का उपयोग घरेलू उपकरण, लेबोरेटरी उपकरण, सजावटी सामान, लेंस आदि बनाने में होता है।
  4. संश्लेषित बहुलक (जैसे प्लास्टिक) का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में होता है।

टिप: अक्रिस्टलीय ठोस को गर्म करके तेजी से ठण्डा करने पर वह क्रिस्टलीय ठोस में परिवर्तित हो सकता है।


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