क्रिस्टलीय ठोस (Crystalline Solids):-
वे ठोस जिनमें अवयवी कणों की त्रिविम में (अर्थात् विस्तृत क्षेत्र में एक निश्चित एवं नियमित व्यवस्था होती है अर्थात् अवयवी कणों की दीर्घ परासी व्यवस्था (Long range order) पायी जाती है, क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।
इन ठोसों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित है
(i) क्रिस्टलीय ठोसों की एक निश्चित आकृति होती है।
(ii) इनमें कणों की व्यवस्था दीर्घ परासी होती है।
(iii) क्रिस्टलीय ठोसों के गलनांक निश्चित (तीक्ष्ण) होते हैं एवं उनके शीतलन वक्र असतत् होते हैं।
(iv) क्रिस्टलीय ठोस ही वास्तविक ठोस (True solid) होते हैं।
(v) क्रिस्टलीय ठोस सम्पीड्य एवं कठोर (दृढ़) होते हैं।
(vi) इन ठोसों के पृष्ठ एकसमान तथा समतल होते हैं।
(vii) क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक (Anisotropic) प्रकृति के होते हैं अर्थात् इनके भौतिक गुणों (कठोरता, अपवर्तनांक, चालकता, आदि) में अलग-अलग दिशाओं में भिन्नता पायी जाती है। उदाहरण- निम्न चित्र में क्रिस्टलीय ठोस को नियमित व्यवस्था को प्रदर्शित किया गया है।
क्रिस्टलीय ठोसों के उपयोग (Uses of Crystalline Solids):-
क्रिस्टलीय ठोसों के मुख्य उपयोग निम्न हैं
(i) हीरा क्रिस्टलीय ठोस का सबसे अच्छा उदाहरण है जिसका उपयोग आभूषण बनाने में किया जाता है।
(ii) क्वार्ट्ज का उपयोग कलाई तथा दीवार घड़ियों को बनाने में किया जाता है।
(iii) कच्चे उत्पाद के रूप में बहुत से क्रिस्टलीय ठोस का उपयोग किया जाता है।
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