Class 9 Hindi Chapter 2 संत रैदास प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी संदर्भ सहित व्याख्या:-
1. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग-अंग बास समानी।।
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा।
जैसे चितवत चंद चकोरा ।।
सन्दर्भ:-
प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पद में कवि की अनन्य भक्ति प्रदर्शित हुई है।
व्याख्या-
सन्त रैदास जी कहते हैं कि मेरे मन में राम नाम की जो रट लगी है, अब वह नहीं छूट सकती है। हे प्रभुजी ! आप चन्दन हैं और मैं पानी, जिसकी सुगन्ध मेरे अंग-अंग में समा गयी है। हे प्रभु! आप इस उपवन के वैभव हैं और मैं मोर । मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है जैसे चकोर चन्द्रमा की तरफ देखता रहता है। उसी प्रकार मेरा मन भी सदैव आपके ऊपर लगा रहता है। आपसे पृथक् रहकर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
2. प्रभु जी तुम दीपक हम बाती ।
जाकी जोति बरै दिन राती ।।
प्रभु जी तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
सन्दर्भ-
पूर्ववत
प्रसंग-
इन पंक्तियों में सन्त रैदास की ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति का वर्णन है।
व्याख्या-
रैदास जी कहते हैं कि हे ईश्वर ! आप दीपक हैं और मैं उस दीप की प्राता हूँ जिसकी ज्योति दिन रात निरन्तर जलती रहती है । हे ईश्वर! आप मोती हैं और मैं उस मोती में पिरोया जाने वाली धागा हूँ। यह स्थिति उसी प्रकार है जैसे सोने और सुहागा के मिलने पर होता है। हे ईश्वर ! मैं सदैव आपके निकट ही रहना चाहता हूँ।
3. प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
सन्दर्भ-
पुर्ववत
प्रसंग-
इन पंक्तियों में रैदास जी ने अपने को ईश्वर के दास के रूप में प्रदर्शित किया है।
व्याख्या-
रैदास जी कहते हैं कि हे प्रभुजी ! आप स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह का भक्ति भाव है। रैदास जी अपने को ईश्वर का दास समझ बैठे हैं। ईश्वर के प्रति उनकी अनन्य भक्ति है। ईश्वर के प्रति इस प्रकार की भक्ति रखने वाले लोग इस संसार के माया-मोह से मुक्त हो जाते हैं।
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