अध्याय 28जन्तुओं में जनन एवं परिवार नियोजन (Reproduction in Animals and Family Planning):–
जन्तुओं में जनन (Reproduction in Animals):–
वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जीवधारी अपने जैसे जीव उत्पन्न करते हैं अथवा वह प्रक्रिया, जिसके फलस्वरूप अपने वंश व प्रजाति की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए माता-पिता द्वारा सन्तान का जन्म होता हैं, जनन (Reproduction) कहलाती है। यह एक आवश्यक जैव प्रक्रिया है। पादपों की तरह जन्तुओं में भी जनन सामान्यतया दो प्रकार से होता है।
1. अलैंगिक जनन
2. लैंगिक जनन
जन्तुओं में अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction in Animals:–
जन्तुओं में अलैंगिक जनन बहुत आम नहीं होता, यह सिर्फ निम्न स्तर के जन्तुओं जैसे में ही देखने को मिलता है। उच्च जन्तुओं में लैंगिक जनन ही मुख्य जनन होता है तथा अलैंगिक जनन मुख्यतया पुनरुद्भवन तक ही सीमित होता है। एककोशिकीय जन्तुओं को अ बहुकोशिकीय जन्तुओं को जनन के लिए अपेक्षाकृत अधिक जटिल विधि की आवश्यकता होती है, क्योंकि विशेष कार्य हेतु इनमें शिर कोशिकाएँ संगठित होकर ऊतक का निर्माण करती है तथा ऊतक संगठित होकर अंग बनाते हैं, शरीर में इनकी स्थिति भी निश्चित होते है। इसीलिए जन्तुओं में अलैंगिक जनन का अध्ययन एककोशिकीय और बहुकोशिकीय प्रकारों में अलग-अलग किया जाता है।
एककोशिकीय जन्तुओं में अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction in Unicellular Organisms):–
एककोशिकीय जन्तुओं में अलैंगिक जनन की विधियों निम्नलिखित हैं
विखण्डन (Fission):–
इस विधि से प्रायः एककोशिकीय जन्तु प्रजनन करते हैं। एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिका विभाजन या विखण्डन (Cell divin द्वारा नए जन्तुको उत्पत्ति होती है। विखण्डन की कुछ प्रमुख विधियों निम्न हैं
(i) द्विविखण्डन (Binary Fission) कुछ प्रोटोजोआ (Protozoa) की कोशिकाएँ विभाजन द्वारा सामान्यतया दो बराबर भागे विभक्त हो जाती है; उदाहरण- अमीबा, पैरामीशियम, आदि। इस प्रक्रिया में पहले केन्द्रक का विभाजन होता है, तत्पश्चात कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) का विभाजन होता है, जिससे प्रत्येक कोशिका दो सन्तति कोशिकाओं में बँट जाती है।
(ii) बहुविखण्डन (Multiple Fission) कुछ एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिकाद्रव्य विभाजित होकर अनेक विखण्ड बना लेते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में कोशिका आवरण फटने पर ये विखण्ड मुक्त होकर स्वतन्त्र जीवों के रूप में विकसित हो जाते हैं; उदाहरण - प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी)।
बीजाणुजनन (Sporulation):–
इस विधि में एककोशिकीय जीव की केन्द्रक कला (Nuclear membrane) कभी-कभी टूट जाती है, जिससे उसमें उपस्थित क्रोमैटिन कण कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में बिखर जाते हैं। यह क्रोमैटिन कण कोशिकाद्रव्य के साथ मिलकर बीजाणु (Spores) बनाते हैं, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवों के चारों ओर एक कठोर आवरण (Cyst wall) बन जाता है। यह आवरण अनुकूल परिस्थितियों में फट जाता है और बीजाणु मुक्त होकर नए जीव का निर्माण करते हैं। इस प्रकार का अलैंगिक जनन मुख्यतया अमीबा में होता है।
बहुकोशिकीय जन्तुओं में अलैंगिक जनन(Asexual Reproduction in Multicellular Organisms):–
बहुकोशिकीय जन्तुओं में अलैंगिक जनन की विधियाँ निम्नलिखित हैं
खण्डन (Fragmentation):–
सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जन्तुओं में जनन की खण्डन विधि कार्य करती है; उदाहरण–हाइड्रा। इस विधि में जन्तु का शरीर सामान्य रुप से विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खण्डित हो जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक टुकडा वृद्धि कर नए जीव की उत्पत्ति करता है।
मुकुलन (Budding):–
इस विधि में शरीर पर एक छोटा-सा उभार बाहर की ओर निकलने लगता है, जिसे मुकुल (Bud) कहते हैं। यह मुकुल धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और जनक जीव से अलग हो जाता है; उदाहरण- हाइड्रा जिसमें नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है। यही उभार वृद्धि करता हुआ नए जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतन्त्र जीव बन जाता है।
पुनरुद्भवन (Regeneration):–
किसी जन्तु के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतया नए जन्तु की उत्पत्ति को पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहते हैं; उदाहरण-हाइड्रा तथा प्लेनेरिया, आदि जीवों को यदि अनेक टुकड़ों में काट दिया जाए, तो प्रत्येक भाग वृद्धि एवं विभाजन द्वारा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण करता है। जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई सन्तति उत्पन्न नहीं कर सकते, क्योंकि इन जीवों की कोशिकाएँ विभिन्न कार्यों हेतु विशिष्टकृत हो जाती हैं और उनमें विभाजन की क्षमता नहीं रहती।
जन्तुओं में लैंगिक जनन(Sexual Reproduction in Animals):–
जन्तुओं में लैंगिक जनन ही मुख्य जनन होता है।
युग्मकों के निर्माण के आधार पर जन्तुओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं
(i) जिन जन्तुओं के शरीर में दोनों प्रकार के युग्मकों का निर्माण होता है, उन्हें द्विलिंगी (Bisexual or Hermaphrodite) कहते हैं; उदाहरण-केंचुआ, जोक, आदि।
(ii) जिन जन्तुओं में नर और मादा युग्मक अलग-अलग शरीरों में बनते हैं, उन्हें एकलिंगी (Unisexunl) कहते हैं। इन जन्तुओं में जब नर एवं मादा को उनके दैहिक गुणों (मुख्यतया सहायक जननांगों) से देखकर पहचान सकते हैं, तो ऐसे जीवों में लैंगिक द्विरूपता (Sexual dimorphism) उपस्थित होती है; उदाहरण-मानवा यह द्विरूपता पादपों में नहीं पाई जाती हालांकि जन्तुओं एवं पादपों दोनों के ही युग्मकों में द्विरूपता पाई जाती है। नर युग्मक (Male gamete) आकार में अपेक्षाकृत छोटा व सचल (Motile) होता है, जबकि मादा युग्मक (Female gamete) आकार में बड़ा तथा अचल (Non-motile) होता है। नर युग्मक को शुक्राणु (Sperm) तथा मादा युग्मक को अण्डाणु (Ovum) कहते हैं। इन युग्मकों का निर्माण युग्मकजनन (Gametogenesis) के द्वारा होता है।
जन्तुओं में लैंगिक जनन के आवश्यक चरण(Essential Steps of Sexual Reproduction in Animals):–
युग्मकजनन(Gametogenesis) :–
युग्मकों के निर्माण की प्रक्रिया युग्मकजनन (Gametogenesis) कहलाती है। युग्मकजनन में जनन कोशिका (Generative cell) में अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) द्वारा अगुणित (Haploid) कोशिकाओं का निर्माण होता है, जो युग्मक कहलाते हैं। नर में मातृ कोशिका (Spermatogonia) से चार कोशिकाएँ बनती हैं, जो प्रायः सभी शुक्राणुओं में बदल जाती हैं। मादा में मातृ कोशिका (Oogonia) के अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा बनी चार कोशिकाओं में से केवल एक ही कोशिका परिपक्व होकर अण्डाणु का निर्माण करती है
नर युग्मक से शुक्राणु के बनने की क्रिया शुक्राणुजनन (Spermato. genesis) तथा मादा युग्मक से अण्ड बनने की क्रिया अण्डजनन (Oogenesis) कहलाती है। शुक्राणुओं का निर्माण वृषण (Testis) में होता है। वृषण नर के शरीर में उदरगुहा के बाहर त्वचा निर्मित एक थैली (Serotum or scrotal sac) में शिश्न (Penis) के दोनों ओर स्थित होते हैं। स्तनियों में शुक्राणुओं का निर्माण देहगुहा (Body) के तापक्रम पर नहीं हो सकता है। इन्हें देहगुहा के ताप से 2-3°C कम ताप की आवश्यकता होती है। शुक्राणु एवं अण्डाणु की संरचना चित्र 7.6 से समझ सकते हैं।
निषेचन (Fertilisation):–
युग्मकों के परस्पर मिलने की क्रिया निषेचन कहलाती है। जन्तुओं में निषेचन दो प्रकार से होता है
(i) बाह्य निषेचन (External Fertilisation) जब निषेचन शरीर के बाहर होता है, तो वह बाह्य निषेचन कहलाता है। यह सदैव जलीय माध्यम में होता है; उदाहरण- मत्स्य एवं उभयचर में।
(ii) आन्तरिक निषेचन (Internal Fertilisation) यह शरीर के अन्दर होता है। माध्यम इसमें भी जलीय ही होता है, परन्तु विशेष संरचनाओं या जनन वाहिनियों के अन्दर होता है; उदाहरण- सरीसृप, पक्षियों एवं स्तनियों (मनुष्य) में।
इन जन्तुओं में विविध प्रकार के सहायक जननांग होते हैं, जोकि शुक्राणुओं को मादा के शरीर में पहुँचाने में मदद करते हैं। शुक्राणुओं के मादा शरीर में पहुँचाने की प्रक्रिया को मैथुन (Copulation) कहते हैं।
निषेचन को स्वनिषेचन (Self-fertilisation) और परनिषेचन (Cross -fertilisation) की तरह भी वर्गीकृत कर सकते हैं। अधिकतर जन्तुओं में विभिन्नताएँ बढ़ाने के लिए परनिषेचन ही होता है, परन्तु कुछ जन्तुओं में स्वनिषेचन भी पाया जाता है; उदाहरण-मुख्यतया कृमि परजीवियों में।
मानव में आन्तरिक निषेचन(Internal Fertilisation in Human):–
मैथुन के पश्चात् शुक्राणु, मादा की योनि (vagina) में चले जाते हैं, जो पूँछ की सहायता से गति करके गर्भाशय ( Uterus) से होते हुए अण्डवाहिका (Fallopian tube) में पहुँचते हैं, जहाँ निषेचन क्रिया सम्पन्न होती है।
निषेचन के एक सप्ताह पश्चात् निषेचित अण्ड या युग्मनज (Zygote) गर्भाशय में स्थापित हो जाता है। यह प्रक्रिया गर्भाधान (Implantation) कहलाती है। भ्रूण (Embryo) को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष प्रकार की संरचना होती है, जिसे जरायु या ऑवल (Placenta ) कहते हैं।
युग्मनज का परिवर्धन (Development of Zygote):–
युग्मनज एककोशिकीय द्विगुणित (Diploid) संरचना होती है। इसमें समसूत्री विभाजन (Mitosis) होता है, जिसके फलस्वरूप यह बहुकोशिकीय भ्रूण में बदल जाता है। युग्मनज में इस प्रक्रिया को विदलन (Cleavage) कहते हैं, सम्पूर्ण बहुकोशिकीय भ्रूणावस्था तक पहुँचने के लिए युग्मनज पहले मॉरुला (Morula), ब्लास्टुला (Blastula) तथा फिर गैस्टुला (Gastrula) प्रावस्था में बदलता है।
गैस्टुला अवस्था में तीन जनन स्तरों का विकास होता है। अधिकांश जन्तुओं में (मुख्यतया पक्षियों में) भ्रूण का परिवर्धन शरीर के बाहर अण्डे के कवच के अन्दर होता है, इसे अण्डजरायुजता (Oviparity) कहते हैं, ऐसे जीव अण्डजरायुज (Oviparous) कहलाते हैं।
मनुष्य तथा सभी स्तनियों में अधिकांश भ्रूण का परिवर्धन मादा शरीर के अन्दर (गर्भाशय में) होता है। इसे जरायुजता (Viviparity) कहते हैं तथा ऐसे जीव जरायुज (Viviparous) कहलाते हैं।
मानव में युग्मनज का परिवर्धन(Development of Zygote in Human):–
मानव में भ्रूण को विकसित होने में 9 माह का समय लगता है। इस पूरे समय के दौरान भ्रूण मादा (स्त्री) के गर्भाशय में रोपित रहता है और जरायु (Placenta) के द्वारा अपनी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। यह एक तश्तरीनुमा संरचना होती है, जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी रहती है। मानव में युग्मनज का विदलन एवं भ्रूण का प्रारम्भिक विकास निम्न चित्र से समझा जा सकता है
जनसंख्या एवं परिवार नियोजन(Population and Family Planning):–
एक ही समय में एक ही क्षेत्र में रहने वाले एक ही जाति के जीवों के समूह को जनसंख्या या समष्टि (Population) कहते हैं। किसी क्षेत्र विशेष में जनसंख्या का उस स्थिति तक बढ़ जाना कि उस क्षेत्र में उपलब्ध खाद्य-पदार्थ, जल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन उस जनसंख्या के लिए अपर्याप्त हो जाए, तो उसे जनसंख्या विस्फोट (Population explosion) कहते हैं। इस जनसंख्या विस्फोट से बचने के लिए ही परिवार को नियोजित करने की आवश्यकता होती है।
जनसंख्या वृद्धि दर (Population Growth Rate):–
किसी निश्चित समय में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को जनसंख्या वृद्धि दर कहते हैं। वर्तमान में विश्व के विकसित देशों में आबादी की औसत वृद्धि दर 2% है। विकासशील देशों में यह दर लगभग 2.4% है। भारत की जनसंख्या वृद्धि 1.94% है, जिसके चलते 11 मई, 2011 को भारत की जनसंख्या 121 करोड़ से अधिक हो गई थी।
जनसंख्या में इस विस्फोटक वृद्धि के कारण देश के आर्थिक विकास से अंवरोध उत्पन्न हो रहा है। अत: इस वृद्धि पर रोक लगाना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है।
जनसंख्या वृद्धि (विस्फोट) के कारणReasons of Population Growth):–
जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं
(i) निम्न सामाजिक स्तर (Low Social Status) हमारे देश में लोगों का रहन-सहन का स्तर निम्न (Low) है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली अधिकांश जनता निर्धन है, जो यह विश्वास करती हैं, कि जितने अधिक बच्चे होंगे, वे उतना ही अधिक धनोपार्जन करेंगे।
इस कारण निर्धन परिवार के लोग जनसंख्या नियन्त्रण पर ध्यान नहीं देते हैं।
(ii) निरक्षरता (Illiteracy) भारत में निरक्षरता का प्रतिशत ज्यादा है। अतः लोग छोटे परिवार का महत्त्व नहीं समझते हैं, इस कारण लगातार सन्तानोत्पत्ति होती रहती है।
(iii) सामाजिक रीति-रिवाज (Social Customs and Traditions) हमारे देश में बच्चों को ईश्वर की देन माना जाता है। परिवार में पुत्र का जन्म भी आवश्यक समझा जाता है। यह भी माना जाता है, कि वंश का नाम पुत्र से ही चलता है।
इस कारण पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु लोग कई सन्तानें पैदा कर लेते हैं। इसके कारण परिवार बड़ा होता जाता है।
(iv) कम आयु में विवाह (Marriage in Early Age) ग्रामीण तथा अशिक्षित परिवारों में आज भी बाल-विवाह की प्रथा प्रचलन में है। अनेक कानूनी प्रतिबन्धों के बावजूद कम आयु में ही अनेक विवाह सम्पन्न हो जाते हैं, जिसके कारण कम आयु में ही ये दम्पति सन्तानें पैदा करने लगते हैं।
(v) मृत्यु दर में निरन्तर कमी (Regular Deficit in Death Rate) विभिन्न आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ और सामुदायिक स्वास्थ्य कारणों के फलस्वरूप मृत्यु दर में लगातार कमी आ रही है। हमारे देश में वर्ष 1921 में यह दर 49.2 व्यक्ति प्रति हजार थी, जोकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मात्र 7.2 व्यक्ति प्रति हजार रह गई है।
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम (Disadvantage of Population Growth):–
जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं
(i) शिक्षा व्यवस्था की समस्या (Problem of Education System) शिक्षण संस्थाएं कम होने से बढ़ती हुई आबादी के कारण बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रवेश पाना कठिन हो गया है; जैसे- विद्यालयों के कमरे, फर्नीचर, खेल मैदान, आदि बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त नहीं है।
(ii) रोजगार की समस्या (Employment Problem) बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुपात में रोजगारों की संख्या में वृद्धि पर्याप्त नहीं है, जिससे बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती जा रही हैं।
(iii) खाद्य आपूर्ति की समस्या (Problem of Food Supply) जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में खाद्यानों का उत्पादन कम हो रहा है, जिसके कारण लोगों को खाद्य सामग्री कम मात्रा में उपलब्ध हो पा रही है और बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।
(iv) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा समस्या (Health and Medical Problem) परिवार में बच्चे अधिक होने से माँ का स्वास्थ्य खराब हो जाता है, जिससे बच्चों की उचित देखभाल न होने से वे बीमार तथा दुर्बल हो जाते हैं। हमारे देश में अस्पतालों की संख्या कम होने के साथ-साथ उनमें पर्याप्त औषधियाँ भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
(v) निर्धनता (Poverty) बढ़ने से और आजीविका के साधनों में कमी आने से प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है, जिससे निर्धनता बढ़ती है। उपरोक्त समस्याओं के देखते हुए हम यह समझ सकते हैं, कि किस तरह से जनसंख्या विस्फोट देश के विकास में बाधक है।
जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण(Control of Population Growth):–
जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं
(i) कानूनी व्यवस्था (Legal System) जनसंख्या नियन्त्रण हेतु संविधान में कठोर कानूनी व्यवस्था होनी चाहिए। संविधान के 42वें संशोधन (वर्ष 1976) में संसद और विधान सभाओं को जनसंख्या नियन्त्रण के लिए कानून बनाने के अधिकार प्रदान किए गए हैं। अतः राज्य सरकारों को परिवारों को सीमित रखने सम्बन्धी कानून बनाने चाहिए।
(ii) शिक्षा व्यवस्था (Education System) जनसंख्या वृद्धि रोकने तथा परिवार को सीमित करने के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करने के कार्यक्रम में तेजी लानी चाहिए।
(iii) आर्थिक स्थिति में सुधार (Economical Improvement) लोगों को समय पर उचित रोजगार तथा व्यवसाय मिलने चाहिए, जिससे आर्थिक स्तर में सुधार हो सके ताकि वे शिक्षित होकर जनसंख्या वृद्धि से होने वाले नुकसानों को समझ सकें।
(iv) परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों को बढ़ाना (Increasing Programmes Related to the Family Welfare) परिवारों को सीमित रखने हेतु लोगों में परिवार कल्याण कार्यक्रमों में रूचि बढ़ानी होगी; जैसे- सीमित परिवार वाले व्यक्तियों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, मुफ्त इलाज की व्यवस्था, सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता, आदि कार्यक्रम चलाने चाहिए।
बालक/बालिकाओं के लिए किशोरावस्था से ही पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य एवं यौन शिक्षा को अनिवार्य करना चाहिए, जिसमें वे अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दे सकें।
(v) परिवार नियोजन (Family Planning) परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर, परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन कहते हैं। इससे जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाई जा सकती है।
परिवार नियोजन (Family Planning):–
परिवार नियोजन जनसंख्या विस्फोट रोकने का सबसे व्यावहारिक माध्यम है। नीचे दी गई अस्थाई और स्थाई विधियों द्वारा आसानी से परिवार को नियोजित किया जा सकता है
(i) अस्थाई विधियाँ (Temporary Methods) ये विधियों निम्न है
(a) सुरक्षित काल (Safe Period) मासिक धर्म से एक सप्ताह पूर्व व एक सप्ताह बाद का समय सुरक्षित काल माना जाता है। इस काल में लैंगिक सम्पर्क स्थापित करने पर गर्भधारण की सम्भावना कम रहती है, परन्तु यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं है।
(b) धैर्य (Self Control) असुरक्षित (मासिक) काल में आत्मसंयम रखना चाहिए तथा लैंगिक सम्पर्क स्थापित नहीं करना चाहिए।
(c) लूप अथवा कॉपर-टी (Loop or Cu-T) स्त्रियां लूप लगवाकर गर्भधारण करने से अपना बचाव कर सकती है।
(d) निरोध (Condom) निरोध का प्रयोग पुरुष द्वारा किया जाता है। इसके प्रयोग से गर्भधारण होने की कोई भी सम्भावना नहीं होती है।
(e) गर्भ निरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills) आजकल ऐसी गोलियां उपलब्ध हैं, जिनके सेवन से गर्भधारण की सम्भावनाएं समाप्त हो जाती है। स्त्रियों के लिए अनेक प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियाँ उपलब्ध है; जैसे- मालाडी, पर्ल्स, सहेली, आदि।
(1) गर्भ समापन (Abortion) गर्भधारण करने के बाद भी एक सीमित काल के भीतर किसी कुशल व शिक्षित विशेषज्ञ डॉक्टर से, गर्भ समापन कराया जा सकता है।
(ii) स्थाई विधियाँ (Permanent Methods) ये विधियों निम्न है
(a) महिला का ऑपरेशन (नलबन्दी - Tubectomy) यह विधि पूर्ण तथा स्थाई विधि है। इस विधि में स्त्रियों की अण्डवाहिनी को काटकर बांध दिया जाता है, जिससे अण्डाणु अण्डवाहिका (Fallopian tube) में आगे नहीं बढ़ पाते हैं तथा निषेचन की क्रिया नहीं हो पाती है। यह कार्य सन्तान उत्पत्ति के समय ही कराया जा सकता है।
(b) पुरुष का ऑपरेशन (नसबंदी - Vasectomy) महिलाओं की नलबन्दी की तरह पुरुषों में शुक्रवाहिनी के ऑपरेशन से भी गर्भधारण हो जाती है। इसमें पुरुष की शुक्रवाहिनी की समस्या स्थाई रूप से दूर हो जाती है। इसमें पुरुष काट कर बाँध दी जाती है। यह ऑपरेशन अत्यन्त सरल है तथा कभी भी कराया जा सकता है। पुरुष की सम्भोग क्षमता पर भी इसका कोई प्रभाव नहीं होता है।
(iii) अन्य विधियाँ (Other Methods) ये विधियाँ निम्न हैं
(a) वैक्सीन (Vaccine) गर्भधारण रोकने हेतु सीमित प्रभाव वाली वैक्सीन विकसित कर ली गई है।
(b) विवाह योग्य आयु (Marriageable Age) लड़के के लिए 25 वर्ष तथा लड़की के लिए 21 वर्ष की जानी चाहिए।
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