22(e)उत्सर्जन तंत्र (Excretory system):–
शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के परिणामस्वरूप हानिकारक तथा विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण होता है। इन पदार्थों को शरीर से बाहर निष्कासित करने की जैव-प्रक्रिया को उत्सर्जन (Excretion) कहते है। उत्सर्जन को कार्यान्वित करने वाले अंग उत्सर्जी अंग (Excretory organs) कहलाते हैं।
मनुष्य में ठोस अपशिष्ट पदार्थ गुदा (Anus) द्वारा शरीर के बाहर निकाले जाते हैं। नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ (अमोनिया, यूरिया, आदि) जल में घुलित अवस्था में उत्सर्जन तन्त्र की सहायता से शरीर के बाहर निष्कासित किए जाते हैं। गैसीय अवशिष्ट पदार्थ (CO) व अन्य गैसें) श्वसन क्रिया द्वारा शरीर से बाहर निकलते हैं।
उत्सर्जन के प्रकार (Types of Excretion):–
जन्तुओं के उत्सर्जी पदार्थ विभिन्न प्रकार के होते हैं।
उत्सर्जी पदार्थों के प्रकार के आधार पर उत्सर्जन निम्न तीन प्रकार का होता है।
(i) अमोनिया उत्सर्जन (Ammonotelism) इसमें नाइट्रोजन का उत्सर्जन मुख्यतया अमोनिया के रूप में होता है। ऐसे जन्तु, जो अमोनिया उत्सर्जित करते हैं, उन्हें अमोनोटेलिक (Ammonotelic) कहते हैं;
उदाहरण-जलीय कशेरुकी, अस्थिल मछलियाँ, उभयचर।
(ii) यूरिया उत्सर्जन (Ureotelism) इसमें नाइट्रोजन का उत्सर्जन मुख्यतया यूरिया के रूप में होता है, जोकि इसे उत्सर्जित करने वाले जन्तुओं के यकृत (Liver) में अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड की अभिक्रिया के फलस्वरूप बनती है। यूरिया उत्सर्जित करने वाले जन्तुओं को यूरियोटेलिक (Ureotelic) कहते हैं;
उदाहरण-स्तनधारी, मनुष्य, मेढ़क।
(iii) यूरिक अम्ल उत्सर्जन (Uricotelism) इसमें नाइट्रोजन का उत्सर्जन यूरिक अम्ल के रूप में होता है। यूरिक अम्ल लगभग ठोस अवस्था में उत्सर्जित किया जाता है। यूरिक अम्ल उत्सर्जित करने वाले जन्तुओं को यूरिकोटेलिक (Uricotelic) कहते हैं उदाहरण-पक्षी, सरीसृप, बहुत से कीट।
मानव उत्सर्जन तन्त्र (Human Excretory System):–
मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होते हैं। इनसे सम्बन्धित अन्य सहायक उत्सर्जी अंग निम्नलिखित हैं
1. मूत्रवाहिनियाँ (Ureters)
2. मूत्राशय (Urinary bladder)
3. मूत्रमार्ग (Urethra)
वृक्क (Kidneys):–
मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाए जाते हैं, जो उदरगुहा (Abdomen cavity) में डायाफ्राम (Diaphragm) के नीचे कशेरुक दण्ड के दोनों तरफ अधर सतह पर पतली पेरीटोनियम झिल्ली (Peritonium membrane) द्वारा लगे रहते हैं।
वृक्क की बाह्य संरचना (External Structure of Kidney):–
वृक्क, सेम के बीज के आकार के कत्थई, भूरे लाल रंग के अंग हैं। यह लगभग 10 सेमी लम्बा, 5-6 सेमी चौड़ा एवं 2.5 सेमी मोटा होता है। पुरुष में वृक्क का भार 130-260 ग्राम तथा स्त्रियों में 110-150 ग्राम तक होता है। वृक्क के ऊपर अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) पाई जाती है।
मनुष्य में दायाँ वृक्क बाएँ वृक्क की अपेक्षा कुछ पीछे तथा नीचे की ओर स्थित होता है। वृक्क का भीतरी किनारा धँसा हुआ या अवतल (Concave) तथा बाहरी किनारा उभरा हुआ या उत्तल (Convex) होता है। अवतल तल भोतर की ओर बैँसकर एक गर्त (Phit) बनाती है, जो हाइलम (Hylem) या हाइलस (Hilus) कहलाता है। यहाँ से मूत्रनलिका (Ureter) निकलती है, जो उदर के निचले भाग में स्थित थैलीनुमा मूत्राशय में खुलती है। प्रत्येक वृक्क वृक्क धमनी (Renal artery) द्वारा रुधिर प्राप्त करता है और वृक्क शिरा (Ranal vein) वृक्क से रुधिर एकत्रित करके पश्च महाशिरा (Superior vena cava) में पहुँचाती है।.
वृक्क की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Kidney):–
वृक्क की अनुलम्ब काट में इसकी आन्तरिक संरचना का अध्ययन किया जा सकता है। वृक्क के भीतरी धँसे हुए किनारे के मध्य में कीप के समान एक खोखली संरचना होती है, जो श्रोणि या पेल्विस (Pelvis) कहलाती है। यहीं भाग प्रायः संकरा होकर मूत्रनलिका का निर्माण करता है। वृक्क का शेष भाग ठोस तथा दो भागों बाहरी या परिधीय भागः बल्कुट (Cortex) एवं भौतरी केन्द्रीय भाग; मेड्यूला (Medulla) में बँटा होता है, जैसा कि नीचे ि दर्शाया गया है।
प्रत्येक वृक्क में असंख्य कुण्डलित तथा लम्बी सूक्ष्म नलिकाएँ होती है, जो वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Uriniferous tubules or Nephron ) कहलाती हैं। मेड्यूला में 8-15 त्रिभुजाकार संरचनाएँ पाई जाती है, जो पिरामिड्स (Pyramids) कहलाते हैं। ये वल्कुट द्वारा एक-दूसरे से पृथक रहते हैं, जिन्हें बर्टीनी के रीनल कॉलम (Renal column of Bertin) कहते हैं। प्रत्येक पिरामिड का चौड़ा भाग वल्कुट की ओर रहता है, जो लघु कैलिक्स (Minor calyx) कहलाता है। लघु कैलिक्स में मेड्यूला एक अंकुर के रूप में उभरा रहता है, इसे वृक्क अंकुर (Renal papilla) कहते हैं। दो लघु कैलिक्स परस्पर संगठित वृहद् कैलिक्स (Major calyx) का निर्माण करते हैं। विभिन्न दीर्घ कैलिक्स मिलकर श्रोणि या पेल्विस में खुलती है।
वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन्स की संरचना(Structure of Uriniferous Tubules or Nephrons):–
प्रत्येक वृक्क में लगभग 8-12 लाख महीन, लम्बी तथा कुण्डलित वृक्ष नलिकाएँ या नेफ्रॉन्स होती हैं। नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक तथा क्रियात्मक इक है। ये संयोजी ऊतक, रुधिर वाहिनियाँ, लसीका वाहिनियाँ तथा पेशी तन्तुओं में दबी हुई एवं फंसी हुई पाई जाती हैं। प्रत्येक नेफ्रॉन में निम्नलिखित संरचनाएं होती हैं
(i) बोमेन सम्पुट (Bowman's Capsule) प्रत्येक नेफ्रॉन में दोहरी का युक्त, प्यालेनुमा मैल्पीघी कोष या बोमेन सम्पुट (Malpighian capsule or Bowman's capsule) होता है। बोमेन सम्पुट का बाहरी स्तर चपटी शल्की उपकला (Flattened squamous epithelium) तथा आन्तरिक स्तर विशेष प्रकार की चपटी कोशिकाएँ पोडोसाइट्स (Podocytes) से बना होता है।
(ii) केशिकागुच्छ (Glomerulus) बोमेन सम्पुट के अन्दर रुधिर का प्रवाह एक मोटी, अभिवाही धर्मनिका (Afferent artery) तथा बाहर की ओर रुधिर का प्रवाह एक पतली अपवाही धमनिका (Efferent artery) द्वारा होता है। दोनों धमनिकाएँ बोमेन सम्पुट में केशिकाओं का एक गुच्छा बनाती हैं, जो केशिका गुच्छ कहलाता है।
(iii) मैल्पीघियन कणिका या रीनल कॉर्पुसल्स (Malpighian or RenalCorpuscles)
केशिका गुच्छ तथा बोमेन सम्पुट सम्मिलित रूप से मैल्पीघियन कणिका या रीनल कॉर्पुसल्स कहलाते हैं। मैल्पीघियन कणिका का निचला छोटा भाग ग्रीवा (Neck) कहलाता है, जो रोमाभिक उपकला (Ciliated epithelium) का बना होता है। इसमें उपस्थित रोमान केशिकागुच्छ या गलोमेरुलस निस्यन्द (Glomerular Strate) को नेफॉन में उगे बढ़ाने में सहायक होते हैं।
(iv) समीपस्थ कुण्डलित नलिका (Proximal Convoluted Tubuley का अन्तिम भाग मोटी समीपस्थ कुण्डलित नलिका से जुड़ा रहता है। इस समीपस्थ कुण्डलित नलिका की कोशिकाओं पर रसांकुर (Villi) पाए जाते हैं, जो मिलकर बुश बॉर्डर (Brush border) का निर्माण करती हैं, इससे इस भाग को अवशोषण क्षमता बढ़ जाती है।
मैल्पीघियन कणिका, ग्रीवा तथा समीपस्थ कुण्डलित नलिका भाग वृक्क के वल्कुट अर्थात् रीनल कॉर्टेक्स (Renal cortex) में पाए जाते हैं।
(v) हेन्ले लूप (Loop of Henle) समीपस्थ कुण्डलित नलिका आगे जाकर एक U-आकार की नली या हेन्ले लूप में खुलती है। इसके नीचे की तरफ जाने वाली भुजा अवरोही नलिका (Descending limb) तथा ऊपर की तरफ जाने वाली भुजा आरोही नलिका (Ascending limb) कहलाती है। यह क्रमशः शल्को उपकला तथा घनाकार उपकला (Squamous epithelium and cuboidal epithelium) की बनी होती है। हेन्ले लूप वृक्क के मेड्यूला में स्थित होती है, इसकी सूत्र के सान्द्रण नियमन में मुख्य भूमिका होती है।
(vi) दूरस्थ कुण्डलित नलिका एवं मूत्र संग्रही नलिका (Distal Convoluted Tubule and Urine Collecting Tubule) हेन्ले लूप का आरोही भाग एक छोटी मोटी दूरस्थ कुण्डलित नलिका से जुड़ा रहता है। यह भाग वस्कुट अर्थात् कॉर्टेक्स में पाया जाता है तथा घनाकार उपकला का बना होता है।
दूरस्थ कुण्डलित नलिका वास्तव में वृक्क नलिका का अन्तिम भाग है, जो एक मोटी मूत्र संग्रही नलिका में जाकर खुलती है। यह स्तम्भी उपकला (Columnar epithelium) से निर्मित होती है।
प्रत्येक संग्रह नलिका लगभग 8-9 वृक्क नलिकाओं से जुड़ी होती है। अनेक संग्रह नलिकाएँ एक बड़ी संग्रही नलिका का निर्माण करती है, जो बेलिनी की बाहिनी (Duct of Ballini) कहलाती है। इस नलिका से गुजरते समय मूत्र से अधिकतम जल वापस अवशोषित कर लिया जाता है। अतः यह नलिका बने हुए मूत्र का सान्द्रण के लिए बेलिनी को बाहिनी मूत्रवाहिनी (Ureter) से जुड़े श्रोणि या पेल्विस में खुलती है।
वृक्क में मूत्र निर्माण की क्रियाविधि (Mechanism of Urine Formation in Kidney):–
वृक्क के नेफ्रॉन में मूत्र निर्माण निम्नलिखित तीन प्रक्रियाओं द्वारा होता है
1. परानिस्यन्दन (Ultrafiltration):–
केशिका गुच्छ की रुधिर केशिकाओं में जितना रुधिर अभिवाही धमनिका से आता है, उतना ही समान मात्रा में अपवाही धमनिका से नहीं निकल पाता है। इसके फलस्वरूप केशिका गुच्छ की रुधिर केशिकाओं में रुधिर का दाब बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए दाब के कारण रुधिर का तरल भाग छनकर बोमेन सम्पुट में आ जाता है। यह छना तरल नेफ्रिक निस्यन्द (Nephric filtrate) या ग्लोमेरुलर निस्यन्द (Glomerular filtrate) कहलाता है। इसमें यूरिया, यूरिक अम्ल, ग्लूकोस तथा अनेक लवण होते हैं।
2. वरणात्मक या चयनात्मक पुनरावशोषण(Selective Reabsorption):–
वृक्क में परानिस्यन्दन के दौरान प्रतिदिन लगभग 150-180 लीटर नेफ्रिक निस्यन्द होता है, जिसमें से मात्र 1.5 लीटर मूत्र के रूप में उत्सर्जित होता है तथा शेष भाग का पुनः अवशोषण हेन्ले लूप में हो जाता है। विसरण तथा सक्रिय पुनरावशोषण द्वारा क्रमशः जल तथा अन्य घटकों का अवशोषण हो जाता है। जल के पुनरावशोषण का नियन्त्रण ADH (एण्टी डाइयूरेटिक हॉर्मोन) द्वारा होता है। इस क्रिया में महत्त्वपूर्ण तत्त्व; जैसे-ग्लूकोस, विटामिन, अमीनो अम्ल, आदि पुनः रुधिर में पहुँचा दिए जाते हैं।
3. वाहिकीय स्रावण (Tubular Secretion):–
वृक्क नलिकाओं के समीपस्थ तथा दूरस्य भाग की कोशिकाएँ परिनलिका जाल (Peritubular network) की रुधिर केशिकाओं से हानिकारक उत्सर्जी पदार्थ जो छनने से रह गए थे, सक्रिय विसरण द्वारा वृक्क नलिकाओं की संग्रही नलिका में मुक्त कर दिए जाते हैं। इस क्रिया को वाहिकीय स्त्रावण कहते हैं। शेष छना हुआ तरल मूत्र कहलाता है, नलिकाओं से होता हुआ मूत्राशय में एकत्र होता रहता है। जो समूह
वृक्कों के कार्य (Functions of Kidneys):–
वृक्कों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।
(i) ये उपापचयी नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों; जैसे-यूरिया को द्रव (जल में घुलित) अवस्था में शरीर से बाहर निकालने के लिए प्रमुख उत्सर्जी अंग हैं।
(ii) ये रुधिर में उपस्थित अन्य विषैले तथा अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निष्कासित करने में भी सहायक हैं।
(iii) वरणात्मक पुनरावशोषण एवं वाहिकीय स्रावण द्वारा ये रुधिर की pH को नियन्त्रित रखते हैं, जिससे रुधिर की वांछित अम्लीयता या क्षारीयता बनी J रहती है।
(iv) वृक्क अतिरिक्त पोषक पदार्थों का ऊतक द्रव्य में निष्कासन करते हैं, जिससे इनका सन्तुलन बना रहता है।
(v) परानिस्यन्दन के बाद वृक्क पुनः जल, ग्लूकोस तथा अन्य लवणों का पुनः अवशोषण करते हैं, जिससे रुधिर का परासरणीय दाब (Osmotic pressure) नियन्त्रित रहता है।
(vi) वृक्क शरीर में लवणों की मात्रा को सन्तुलित करता है, जिससे शरीर में रुधिर दाब भी नियन्त्रित रहता है।
(vii) भ्रूणीय अवस्था में वृक्क RBCs का निर्माण भी करते हैं।
समस्थैतिकता (Homeostasis):–
'होमियोस्टैसिस' शब्द वाल्टर कैनन (Walter Cannon: 1932) ने दिया था। शरीर के अन्तः वातावरण के रासायनिक संघटन को स्थिर एवं सन्तुलित बनाए रखने की प्रक्रिया समस्थैतिकता कहलाती है। समस्त सजीवों में बाह्य वातावरण की भौतिक एवं रासायनिक दशाओं में निरन्तर होने वाले परिवर्तन के अनुसार स्वयं को स्थिर अवस्था में बनाए रखने की जन्मजात क्षमता पाई जाती है; उदाहरण- मानव शरीर में सजीव तापनियामक तथा नियन्त्रक पाए जाते हैं, जो शरीर के आन्तरिक तापमान को स्थिर रखते हैं। ठीक इसी प्रकार वृक्क विभिन्न कारकों के द्वारा शरीर में परासरणीय सन्तुलन (Osmotic balance) बनाकर रखते हैं।
मानव में अन्य उत्सर्जी अंग(Other Excretory Organs in Human)
मानव में अन्य उत्सर्जी अंग निम्नलिखित हैं
(i) त्वचा (Skin) मनुष्य तथा अन्य स्तनियों में त्वचा पर उपस्थित स्वेद (Sweat) तथा तेल ग्रन्थियों (Sebaceous gland) के द्वारा स्रावित क्रमशः पसीने तथा तेल में सोडियम क्लोराइड एवं कुछ मात्रा में यूरिया उत्सर्जित होते हैं।
(ii) यकृत (Liver) यकृत में अमोनिया से यूरिया का निर्माण होता है। यूरिया, अमोनिया से कम हानिकारक तथा जल में अधिक घुलनशील होता है। इसके अतिरिक्त यकृत में मृत RBCs के हीमोग्लोबिन के टूटने से पित्त वर्णक बिलिवर्डिन (Biliverdin) तथा बिलिरुबिन (Bilirubin) बनते हैं। ये पित्त रस के साथ आँत (Intestine) में पहुँचते हैं तथा मल पदार्थों के साथ शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं।
(iii) फेफड़े (Lungs) शरीर की कोशिकाओं में कार्बोहाइड्रेट्स से बनी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) भी उत्सर्जी पदार्थ होता है, जो निःश्वास (Expiration) के साथ शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।
(iv) आँत (Intestine) पाचन क्रिया के बाद बचे अपचे भोजन (मल) का शरीर से उत्सर्जन गुदा के द्वारा होता है। अतः आँत को भी अन्य उत्सर्जी अंगों की श्रेणी में रखते हैं। इसके अतिरिक्त कोलन (Colon) में उपस्थित उपकला कोशिकाएँ कैल्शियम फॉस्फेट (CaPO) जैसे लवणों को रुधिर से पृथक करके मल के साथ शरीर से बाहर त्याग देती है। साथ ही कुछ भारी धातुएँ एवं कुछ अपशिष्ठ कार्बनिक यौगिक भी मल के साथ यहीं से उत्सर्जित होते हैं।
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