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पादपों में नियन्त्रण एवं समन्वयन(Control and Coordination in Plants)

 अध्याय- 24
पादपों में नियन्त्रण एवं समन्वयन(Control and Coordination in Plants):–



हम सभी जानते है, कि जैविक क्रियाएँ (Metabolic activities) प्रत्येक जीव का अभिन्न अंग है और सभी जीवों के लिए जैविक प्रक्रियाओं का नियन्त्रण एवं समन्वयन अतिआवश्यक है। जन्तुओं में इन क्रियाओं के नियन्त्रण व समन्वयन के लिए विशेष तन्त्र व अंग पाए जाते हैं, जोकि पादपों की तुलना में अत्यधिक विकसित होते है ऐसा जन्तुओं के गतिशील रहने और बार-बार अपने बाह्य वातावरण को बदलते रहने की वजह से होता है।

जन्तुओं में नियन्त्रण एवं समन्वयन के लिए तन्त्रिका एवं अन्तःस्त्रावी तन्त्र पाए जाते है, परन्तु पादप गतिशील नहीं होते तथा उनका बाह्य वातावरण लगभग समान रहता है। अतः उनमें तन्त्रिका तन्त्र जैसा नियन्त्रण व समन्वयक अनुपस्थित होता है। ये अन्तःस्रावी तन्त्र अर्थात् विशेष रासायनिक समन्वयकों (हॉर्मोन्स) के द्वारा ही अपनी जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं समन्वयन करते हैं।


पादप हॉर्मोन्स (Plant Hormones):-


"हॉर्मोन' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम स्टरलिंग (Starling) ने किया था। पादप हॉर्मोन्स विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो पादपों में वृद्धि (Growth) तथा विकास (Development) को नियन्त्रित करते हैं। इनको हम निम्नलिखित रूप में परिभाषित कर सकते हैं। पादप हॉर्मोन्स विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ है, जो पादयों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते. है। इन्हें पादप हॉर्मोन्स या वृद्धि नियामक हॉर्मोन्स भी कहते हैं।


सामान्यतया ये पादप की जड़ या तने के शीर्ष से स्रावित होते हैं और जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं। सामान्यतया ये पादप की जड़ (Roots) या तने (Stems) के शीर्ष से स्त्रावित होते हैं और नीचे या ऊपर की तरफ गतिशील होकर विभिन्न जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं।


पादप हॉर्मोन्स की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है


(i) ये जड़, तना एवं कलिका के शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristem) में बनते हैं तथा वृद्धि का नियन्त्रण करते हैं। 

(ii) ये अति अल्प मात्रा में ही प्रभावी हो जाते हैं।

(iii) सामान्य से कम या अधिक मात्रा में होने पर इनका पादप क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।


पादप हॉर्मोन्स को मुख्यतया दो में बाँटा जा सकता है


(i) वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन्स (Growth Promoting Hormones) ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके विभिन्न अंगों में वृद्धि को प्रेरित करते हैं; जैसे- ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, आदि।


(ii) वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स (Growth Inhibitory Hormones) ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके अंगों में वृद्धि को रोकते हैं; जैसे-एक्सिसिक अम्ल, इथाइलीन, आदि।


महत्त्वपूर्ण वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन्स (Important Growth Promoting Hormones):–


ऑक्सिन (Auxin):-


ऑक्सिन की खोज वेण्ट (Went) नामक वैज्ञानिक ने की थी। ये जड़ या तने के वृद्धि शीर्ष (Growing apex) से स्रावित कार्बनिक पदार्थ ( Organic substance) हैं, जो मुख्यतया कोशिकाओं में दीर्घीकरण (Elongation) को प्रेरित करते हैं। इसके अतिरिक्त पादपों की विभिन्न जैविक क्रियाओं को भी प्रभावित करते हैं। ऑक्सिन की सबसे अधिक सान्द्रता (Concentration) पादपों की शीर्ष विभज्योजक एवं कलिकाओं (Buds), आदि में पाई जाती है।


ऑक्सिन के उदाहरण


(i) IAA (इण्डोल ऐसीटिक अम्ल - Indole Acetic Acid) 

(ii) IBA (इण्डोल ब्यूटाइरिक अम्ल-Indole Butyric Acid) 

(iii) I3PA (इण्डोल 3 पाइरुविक अम्ल-Indole 3 Pyruvic Acid) 

(iv) P-NAA (B-नेपथेलीन ऐसीटिक अम्ल - Nepththalene Acetic Acid) 

(v) 2, 4-D (2,4-डाइक्लोरोफिनॉक्सी ऐसीटिक अम्ल- Dichloro-phenoxy Acetic Acid)


ऑक्सिन के कार्य (Functions of Auxins):-

 इसके कार्य निम्नलिखित हैं


(i) शीर्ष प्रमुखता (Apical Dominance) ऑक्सिन शीर्ष कलिका (Apical bud) में उपस्थित होता है तथा उसको वृद्धि के लिए प्रेरित करता है। इसे शीर्ष प्रमुखता कहते हैं, क्योंकि इसके कारण पार्श्व कलिकाओं (Lateral buds) की वृद्धि नहीं हो पाती, परन्तु शीर्ष कलिका को काट देने पर पार्श्व कक्षीय कलिकाओं में वृद्धि होने लगती है।


(ii) कोशिका दीर्घीकरण (Cell Elongation) प्ररोह (Shoot) में ऑक्सिन की अधिक सान्द्रता कोशिकाओं का दीर्घीकरण करती हैं।


(iii) प्रकाशानुवर्तन गति (Photoperiodism) पादपों में प्रकाशानुवर्तन गति (प्रकाश की तरफ) ऑक्सिन के कारण होती है।


(iv) पुष्पन आरम्भन (Initiation of Flowering) ऑक्सिन का विलयन अनन्नास, लीची, आदि के पादपों पर छिड़कने से सभी पुष्प एक ही समय पर उत्पन्न होते हैं।


(v) विलगन का रुकना (Stoppage of Abscission) ऑक्सिन की सान्द्रता कम हो जाने पर विलगन परत बन जाने से पत्तियाँ, फूल व फल गिरने लग जाते हैं। 2, 4-D, IBA, NAA, आदि ऑक्सिन्स का छिड़काव करने से विलगन रुक जाता है।


(vi) प्रसुप्ति (Dormancy) ऑक्सिन का प्रयोग करके कलिकाओं, बीजों व कन्दों को सुप्त किया जा सकता है, जिससे इन्हें अधिक समय तक कोल्डस्टोरेज में रखा जा सकता है।


(vii) कोशिका विभाजन (Cell Division) ये हॉर्मोन्स साइटोकाइनिन्स के साथ क्षति (Injury) में, कैम्बियम के विभाजन के समय, कलम बाँध (Grafting) के समय तथा ऊतक संवर्धन (Tissue culture) में यदि निश्चित मात्रा में प्रयोग किए जाए, तो कोशिका विभाजन बढ़ता है।


(viii) खरपतवार नाशक (Weedicides) 2, 4-D व्यापक रूप से द्विबीजपत्री (Dicot) खरपतवारों का नाश कर देता है, लेकिन एकबीजपत्री (Monocot) परिपक्व पादपों को प्रभावित नहीं कर पाता।


(ix) अनिषेकफलन (Parthenocarpy) सन्तरा, नींबू, अंगूर, केला, आदि में ऑक्सिन के प्रयोग द्वारा बीजरहित फल बनते हैं। फल बनने में निषेचन का प्रयोग न होने के कारण इस प्रक्रिया को अनिषेकफलन कहते हैं।


जिबरेलिन (Gibberellin):-


इसकी खोज सर्वप्रथम जापानी वैज्ञानिक कुरोसावा (Kurosawa; 1926) ने धान के खेत में की थी। याबुता तथा सुमिकी (Yabuta and Sumiki) ने इन्हें जिबरेला फ्यूजीकुरॉई (Gibberella fujikuroi) नामक कवक (Fungi) से प्राप्त किया था। यह एक वृद्धि नियन्त्रण पदार्थ है, इसे जिबरेलिन 'GA' भी कहा ' जाता है। यह कमजोर अम्लीय हॉर्मोन है। अभी तक 100 जिबरेलिन्स की खोज हो चुकी है, जिसमें से GA३ सबसे महत्त्वपूर्ण है।


जिबरेलिन के कार्य (Functions of Gibberellin):-


इसके कार्य निम्नलिखित हैं


(i) आनुवंशिक बौने पादपों का दीर्घीकरण (Elongation of Genetically Dwarf Plants) ये हॉर्मोन्स आनुवंशिक बौने पादप के दीर्धीकरण में सहायक है; जैसे-मक्का एवं मटर। इसके अतिरिक्त यह हॉर्मोन पर्वों (Internodes) की कोशिकाओं का दीर्घीकरण भी करता है। जिससे तने की लम्बाई बढ़ जाती है। इस प्रकार से तने का लम्बाई में बढ़ना बोल्टिंग (Bolting) कहलाता है।


(ii) दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादपों में पुष्पन (Flowering in long-Day Plants) दीर्घं प्रदीप्तिकाली पादपों को जिबरेलिन देने से इनमें लघु प्रकाश अवधि में ही पुष्पन हो जाता है।


(iii) प्रसुप्ति को दूर करना (Breaking Darmaney) आलू के कन्द और पादपों पर लगी शीतकालीन कलियों की प्रसुप्ति (Dormancy) जिबरेलिन द्वारा दूर की जाती है अर्थात् ये कन्द तथा बीजों को अंकुरण के लिए प्रेरित करता है।

(vi) अनिषेकफलन (Parthenocarpy) जिबरेलिन द्वारा टमाटर, सेब, नाशपाती (पोम) तथा गुठली युक्त फलों में अनिषेकफलन, ऑक्सिन की अपेक्षा अधिक सुलभता से किया जा सकता है।


(v) शीत उपचार का प्रतिस्थापन ( Substitution of Cold Treatment) कुछ द्विवर्षीय (Biennial) पादपों को जिबरेलिन देने से इन पादपों को शीतकाल के प्राकृतिक तापमान की आवश्यकता नहीं रहती और ये एक ही वर्ष में पुष्पन कर लेते हैं।


(vi) बीजों का अंकुरण (Germination of Seeds) कुछ पादप; जैसे - सलाद (Lettuce) तथा तम्बाकू में प्रकाश की उपस्थिति में अंकुरण होता है, परन्तु जिबरेलिन देने से ये अन्धकार में भी अंकुरित हो जाते हैं।


(vii) एधा की सक्रियता को बढ़ाना (Activation of Cambium) काष्ठ युक्त पादपों में जिबरेलिन एधा की क्रियाशीलता को बढ़ा देते हैं।


(viii) इसके अतिरिक्त यह फलों के परिवर्द्धन में भी उपयोगी हैं; जैसे- अंगूर, आदि अर्थात् इसका प्रयोग अंगूर के आकार एवं गुच्छे की लम्बाई बढ़ाने में किया जाता है। इस क्रिया में जिबरेलिन के प्रभाव से कुछ एन्जाइम्स (जैसे- प्रोटिएज, लाइपेज तथा एमाइलेज) संश्लेषित होकर बीजपत्रों a- में संचित खाद्य पदार्थ को विलेय अवस्था में बदल देते हैं, जिससे ये को शीघ्रता से मिल जाते हैं।



दीप्तिकालिता (Photoperiodism):-


गार्नर एवं एलार्ड (Ganer and Allard) ने सर्वप्रथम दीप्तिकालिता की परिकल्पना को बताया। उनके अनुसार दिन तथा रात अथवा दीप्तिकाल का पादपों की शारीरिक क्रिया तथा पुष्पन पर भी प्रभाव पड़ता है। दीप्तिकाल के प्रभाव से पत्तियों में फ्लोरिजन नामक हॉर्मोन उत्पन्न होता है, जो पादपों में पुष्पन हेतु उत्तरदाई होता है।


दीप्तिकाल के आधार पर पादपों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं


(i) अल्प प्रदीप्तिकाली पादप (Short Day Plants) ये पादप निर्णायक दीप्तिकाल से कम अवधि पर पुष्प उत्पन्न करते हैं, उदाहरण तम्बाकू, सोयाबीन, गन्ना, सरसों, आदि।


(ii) दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादप (Long-Day Plants) ये पादप निर्णायक दीप्तिकाल से अधिक अवधि पर पुष्प उत्पन्न करते हैं, उदाहरण- चुकन्दर, मूली, गाजर, आलू, आदि।



साइटोकाइनिन (Cytokinin):-


मिलर तथा उनके सहयोगियों (Miller et.al) ने इसे सर्वप्रथम खमीर (Yeast) और फफूँद DNA से प्राप्त किया और इसीलिए इसे काइनेटिन नाम दिया अर्थात् जो न्यूक्लिक अम्ल (DNA) के अपघटन से बनता है।


स्कूग (Skoog) ने नारियल पानी को काइनेटिन के समान पाया। लेथम तथा उसके सहयोगियों (Latham etal; 1963) ने प्रथम प्राकृतिक साइटोकाइनिन को अपरिपक्व मक्के के दाने में खोजा और इसे जियाटिन (Zeatin) नाम दिया। जियाटिन एक प्राकृतिक एवं सबसे अधिक सक्रिय साइटोकाइनिन है।


साइटोकाइनिन के कार्य (Functions of Cytokinin):-


इसके कार्य निम्नलिखित हैं


(i) कोशिका विभाजन (Cell Division ) साइटोकाइनिन ऑक्सिन के साथ मिलकर कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है।


(ii) कोशिका दीर्घकरण तथा विभेदन (Cell Elongation and Differentiation) यह कोशिकाओं में वृद्धि को प्रेरित करता है। कैलस (Callus) में कम साइटोकाइनिन व उच्च ऑक्सिन सान्द्रता से जड़ो का तथा उच्च साइटोकाइनिन व कम ऑक्सिन सान्द्रता से प्ररोह का निर्माण होता है।


(iii) शीर्ष प्रभाविता का प्रतिकार (Counteraction of Apical Dominance) साइटोकाइनिन के कारण शीर्षस्थ कलिका की उपस्थिति में भी पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि कर पाती हैं।


(iv) प्रकाश संवेदी बीजों का अंकुरण (Germination of Light Sensitive Seeds) साइटोकाइनिन की मदद से सलाद एवं तम्बाकू के बीज अन्धकार में भी अंकुरित हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त जैन्थियम, लैम्ना, आदि पादपों में भी साइटोकाइनिन लाल प्रकाश की उपस्थिति में समान प्रभाव दर्शाते हैं तथा अंकुरण को प्रेरित करते हैं।

उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त ये जीर्णता में विलम्ब (Delaying in Senescence), पोषक पदार्थों का अभिगमन, हरितलवक के परिपक्वन, फ्लोएम में संवहन का नियन्त्रण, मूल को प्रेरित करने के साथ उसके व्यास में वृद्धि, प्रसुप्तावस्था को नष्ट करना, प्रतिरोधकता बढ़ाने आदि कार्यों में भी उपयोगी है।


महत्त्वपूर्ण वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स(Important Growth Inhibitory Hormones):-

 कुछ वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स निम्न प्रकार हैं


एब्सिसिक अम्ल (Abscisic Acid):–


कार्न्स तथा एडिकोट (Carns and Addicott; 1961-65) ने इसे कपास के पादपों की कलियों (Buds) से अलग किया था। यह मात्र कोशिका विभाजन को ही नहीं रोकता वरन् पादप की सम्पूर्ण उपापचयी क्रियाओं (Anabolic reactions) को ही धीमा कर देता है, जिसे सुषुप्तावस्था या प्रसुप्तावस्था (Dormancy) कहते हैं। इसीलिए इसे वृद्धि निरोधक हॉर्मोन की तरह वर्गीकृत किया गया है।


वेयरिंग (Wareing) ने इसे ऐसर नामक पादप की पत्तियों से निकाला तथा डोरमिन (Dormin ) नाम दिया।


एब्सिसिक अम्ल के कार्य (Functions of Abscisic Acid):-

 इसके कार्य निम्नलिखित हैं


(i) जीर्णता तथा विलगन (Senescence and Abscission) एब्सिसिक अम्ल पत्तियों में विलगन तथा जीर्णता उत्पन्न करता है अर्थात् इसके छिड़काव से पत्तियाँ शीघ्र झड़ जाती हैं।


(ii) कलिका सुषुप्ति (Bud Dormancy) एब्सिसिक अम्ल एक वृद्धि संदमक (Inhibitor) के रूप में कार्य करता है तथा अनेक पादपों में कलिकाओं को सुषुप्ति के लिए प्रेरित करता है।


(iii) पुष्पन (Flowering) एब्सिसिक अम्ल की उपस्थिति में कुछ अल्प प्रदीप्तिकाली पादपों का दीर्घ प्रदीप्तिकाली अवस्थाओं में पुष्पन हो जाता। है, जबकि दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादपों में यह पुष्पन को संदमित करता है।


(iv) बीज सुषुप्ति (Seed एब्सिसिक अम्ल परिपक्व सुषुप्ति को नियन्त्रित करता है तथा अनुकूल परिस्थितियाँ न मिलने तक भ्रूण की वृद्धि को सुषुप्तावस्था में रोके रखता है। भ्रूण की



(v) बीज अंकुरण (Seed Germination) एब्सिसिक अम्ल बीज अंकुरण का महत्त्वपूर्ण संदमक है। यह अपरिपक्व भ्रूण को समय के पूर्व अंकुरण से रोकता है।


(vi) रन्ध्र (Stomata) यह रन्ध्र के बन्द होने की प्रक्रिया को प्रेरित करता है।


सुषुप्तावस्था (Dormancy):–

यह एक ऐसी अस्थाई अवस्था है, जिसमें उपापचय की दर अत्यधिक कम हो जाती है। प्रायः जब बीज सुषुप्तावस्था को प्राप्त करते हैं और अनुकूल अवस्थाओं में भी अंकुरित नहीं होते हैं, तो इसका मुख्य कारण वृद्धिरोधक हॉर्मोन एब्सिसिक अम्ल होता है। इस प्रकार एब्सिसिक अम्ल ऑक्सिन एवं जिबरेलिन के कार्य को अवरोधित करता है।


इथाइलीन(Ethylene):–


यह पादप जगत का गैसीय हार्मोन्स कहलाता है। बर्ग ने इसे पादप हार्मोन्स सिद्ध किया। डी नेल्जूबो ने बताया कि इथालीन गैस जड़ की ट्रापिक प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन करती हैं। यह फलों को पकाने में सहायता करती है, इसलिए इसे फल पकाने वाला हार्मोन भी कहते हैं। यह भी पौधों के लिए मुख्यता वृद्धि रोधक का कार्य करता है।


इथाइलीन के कार्य (Functions of Ethylene):– 


इसके कार्य निम्नलिखित हैं


(i) फलों की वृद्धि तथा पकना (Fruit Growth and Ripening) इथाइलीन फल वृद्धि तथा उसके पकने को प्रेरित करता है, इस हॉर्मोन का उपयोग सेब, केला, आम, आदि को कृत्रिम रूप से पकाने में किया जाता है।


(ii) अनुप्रस्थ वृद्धि (Transverse Growth) यह हॉर्मोन पादपों की अनुलम्ब वृद्धि को संदमित करता है, किन्तु अनुप्रस्थ वृद्धि को उद्दीप्त (Stimulate) करता है।


(iii) विलगन (Abscission) इथाइलीन पत्तियों, फूलों तथा फलों में विलगन क्षेत्र के निर्माण को उद्दीप्त करता है।


(iv) शीर्षस्थ प्रभाविता (Apical Dominance) यह पार्श्व कलिका की वृद्धि को संदमित करता है। अतः शीर्षस्थ प्रभाविता उत्पन्न करता है अर्थात् पादपों में शीर्ष प्रभाविता के सन्दर्भ में यह हॉर्मोन ऑक्सिन की तरह की व्यवहार करता है।


(v) जड़ प्रारम्भन (Initiation of Root) कम सान्द्रता में इथाइलीन जड़ आरम्भन, कलम में जड़ उत्प्रेरण, पार्श्व जड़ों तथा मूलरोम की वृद्धि, आदि को प्रेरित करता है।


(vi) पुष्पन (Flowering) ऑक्सिन की भाँति ये पुष्पी पादपों में पुष्पन को कम करता है, परन्तु अनन्नास में पुष्पन को प्रेरित करता है।


(vi) प्रसुप्तावस्था (Dormancy) ये विभिन्न पादप अंगों की प्रसुप्तावस्था को नष्ट करता है।


कृषि में पादप हॉर्मोन्स की भूमिका (Role of Plant Harmones in Agriculture):-


कृषि के क्षेत्र में ऑक्सिन, साइटोकाइनिन, जिबरेलिन, आदि हॉर्मोन्स का व्यापक उपयोग किया जा रहा है। इनकी कृषि में भूमिका निम्नलिखित है


(i) फलों में बिलगन को रोकना (Stoppage of Abscission in Pruits) कृत्रिम ऑक्सिम के छिड़काव से फल पेड़ों से नीचे नहीं गिरते। यही कारण है, कि यदि पेड़ो पर फल नहीं रुकते, तो माली उन पर ऑक्सिन का छिड़काव करता है।


(ii) अनिषेकफलन द्वारा फल निर्माण (Pruit formation by Parthenocarpy) कुछ ऑक्सिन का उपयोग बीजरहित फलों का निर्माण करने में किया जाता है; उदाहरण- नींबू, संतरा, अंगूर, आदि।


(iii) आनुवंशिक बौने पादपों का दीर्घीकरण (Elongation of Genetically Dwarf Plant ) ये हॉर्मोन्स आनुवंशिक बौने पादप के दीर्घीकरण में सहायक हैं जैसे-मक्का एवं मटर। इसके अतिरिक्त यह हॉर्मोन पर्वो की कोशिकाओं का दीर्घीकरण करता है, इस प्रकार तने का लम्बाई में बढ़ना बोल्टिंग कहलाता है।


(iv) दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादपों में पुष्पन (Flowering in Long-Day Plants) दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादपों को जिबरेलिन देने से इनमें लघु प्रकाश अवधि में पुष्पन हो जाता है।


(v) शीर्ष प्रभाविता का प्रतिकार (Counteraction of Apical Dominance) साइटोकाइनिन के कारण शीर्षस्थ कलिका की उपस्थिति में भी पार्श्व कलिकाएं वृद्धि कर जाती है।


(vi) प्रकाश संवेदी बीजों का अंकुरण (Germination of Photosensitive Seed) साइटोकाइनिन के उपचार से लेट्यूस एवं तम्बाकू के बीज अन्धकार में भी अंकुरित हो जाते हैं; जैसे- तम्बाकू, जैन्धियम, लैम्ना, आदि अनके पादपों में साइटोकाइनिन लाल प्रकाश से समान प्रभाव दर्शाते है तथा अंकुरण को प्रेरित करते हैं।


(vii) बसन्तीकरण (Vernalisation) जल में भीगे हुए अंकुरित बीजों को निम्न ताप उपचार दिए जाने पर पुष्पन के समय को कम करने की विधि को बसन्तीकरण कहते हैं। यह वर्नेलिन (Vernalin) नामक हॉर्मोन के कारण होता है।


ऑक्सिन तथा जिबरेलिन में अन्तर:–


ऑक्सिन जिबरेलिन
यह शीर्ष प्रमुखता को बढ़ाता है। इससे शीर्ष प्रमुखता पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
ऑक्सिन की अधिक सान्द्रता से जड़ की वृद्धि रुक जाती है। जिबरेलिन से जड़ की वृद्धि पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
ऑक्सिन पुष्पन को प्रभावित नहीं करता है। इससे बसन्तीकरण तथा दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादपों में पुष्पन की क्रिया तेज होती है।
यह बीज के अंकुरण तथा प्रसुप्ति को प्रभावित नहीं करता है। यह बीज के अंकुरण को तीव्र करता तथा प्रसुप्तिकाल को तोड़ता है।

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