अध्याय 26जन्तुओं में रासायनिक समन्वयन(Chemical Coordination in Animals:–
जन्तुओं में समन्वयन की उपयोगिता और उसमें तन्त्रिका तन्त्र की भूमिका को हम पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं। हमने यह भी पढ़ा है, कि तन्त्रिका तन्त्र के अतिरिक्त एक और तन्त्र जन्तुओं और पादपों में समन्वयन का कार्य करता है। यह तन्त्र वास्तव में विशिष्ठ रासायनिक पदार्थों द्वारा शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं और तन्त्रों का नियमन व समन्वयन करता है। इस तन्त्र को अन्तःस्त्रावी तन्त्र (Endocrine system) कहते हैं तथा इस तन्त्र की कार्य प्रणाली में प्रयुक्त विभिन्न विशिष्ठ रासायनिक पदार्थों को रासायनिक सन्देश वाहक या हॉर्मोन कहते हैं। ये हॉर्मोन्स विशिष्ठ ग्रन्थियों से स्त्रावित होते हैं। अत: हॉर्मोन्स के अध्ययन से पूर्व जन्तुओं में पाए जाने वाली विभिन्न ग्रन्थियों का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
ग्रन्थियाँ( Glands):–
शरीर को उपापचयी क्रियाओं के लिए आवश्यक रासायनिक पदार्थों का स्रावण ग्रन्थिल ऊतक युक्त विभिन्न संरचनाओं द्वारा होता है, जिन्हें ग्रन्थियाँ कहते है।
ग्रन्थियों के प्रकार (Types of Glands):–
कशेरुकी प्राणियों में मुख्यतया तीन प्रकार को ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं
(i) बहिःस्त्रावी ग्रन्थियाँ (Exocrine Glands) ये नलिकायुक्त या प्रणाल ग्रन्थियाँ होती हैं। इनका स्राव नलिका द्वारा शरीर के उस विशेष स्थान या अंग में पहुंचाया जाता है, जहाँ उसे कार्य करना है; उदाहरण-स्वेद, लार, दुग्ध, तेल, आदि।
(ii) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands) हॉर्मोन्स स्रावित करने वाली नलिका विहीन (Ductless) ग्रन्थियों को अन्तःसावी ग्रन्थियों कहते हैं। अन्त स्रावी ग्रन्थियों में वाहिकाएं नहीं होती है तथा ये अपना लाव (हॉर्मोन) सीधे रुधिर में स्वावित करती है। रुधिर के द्वारा ही ये स्राव अपनी लक्ष्य कोशिकाओं (वे कोशिकाएँ जिन पर ये हॉर्मोन्स प्रभाव डालते हैं) तक पहुंचते है उदाहरण- थाइरॉइड, पीयूष ग्रन्थि, आदि।
(iii) मिश्रित ग्रन्थियाँ (Mixed Glands) इस प्रकार की ग्रन्थियों मुख्य रूप से तो बहिःस्रावी होती हैं, परन्तु इनका कुछ भाग अन्तःस्रावी भी होता है; उदाहरण- अग्न्याशय)
बहिःस्रावी एवं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में अन्तर:–
बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ | अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ |
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इन ग्रन्थियों में नलिका अवश्य होती है।अर्थात् ये नलिकायुक्त ग्रन्थियाँ होती हैं। | ग्रन्थियों द्वारा स्रावित पदार्थों को निश्चित स्थान तक पहुँचाने के लिए इन ग्रन्थियों में कोई भी नलिका नहीं होती है इसलिए इन्हें सामान्यतया नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ कहा जाता है। |
इनका स्राव नलिका द्वारा शरीर के उस विशेष स्थान पर अथवा उस अंग में पहुँचाया जाता है, जहाँ उसकी आवश्यकता होती है। | इन ग्रन्थियों से स्रावित हॉर्मोन्स को रुधिर में पहुँचा दिया जाता है। इस प्रकार हॉर्मोन्स का परिसंचरण गुप्त रूप से सम्पूर्ण शरीर में होता है। |
इनके स्राव का कार्य सामान्यतया उसी स्थान पर सीमित होता है, जहाँ इसे पहुँचाया जाता है। | हॉर्मोन्स का प्राय: एक विशिष्ट लक्ष्य अंग तथा महत्त्वपूर्ण कार्य होता है। ये लगभग सभी जैविक क्रियाओं पर रासायनिक समन्वयन के लिए आवश्यक है। |
इनका स्राव कुछ समय तक संचित भी रह सकता है। | हॉर्मोन्स शरीर में संचित नहीं होते हैं। |
उदाहरण-यकृत, स्वेद ग्रन्थि (पसीना), लार ग्रन्थि (लार), आदि। | उदाहरण - थाइरॉइड थाइमस, अधिवृक्क, पीयूष, अग्न्याशय, आदि। |
हॉर्मोन्स (Hormones):–
हॉर्मोन एक ऐसा सक्रिय सन्देशवाहक (Messenger) पदार्थ होता है, जिसको निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं।
"ऐसा सक्रिय सन्देशवाहक, पदार्थ जो किसी बाह्य या अन्त: उद्दीपन (Stimulus) के कारण, शरीर के किसी भाग की अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित होकर रुधिर के द्वारा पूर्ण शरीर में संचरित होता है। इसकी सूक्ष्म मात्रा ही शरीर की कोशिकाओं की कार्यिकी को प्रभावित करने के लिए काफी होती है।"
हॉर्मोन प्रायः प्रोटीन, अमीनो अम्ल, स्टीरॉइड्स या इनके व्युत्पन्न होते हैं, इनका अणुभार कम होता है एवं क्रिया के पश्चात् यह नष्ट हो जाते हैं। प्रथम हॉर्मोन सिक्रिटिन (Secretin) की खोज वैयलिस (Bayliss) तथा स्टरलिंग (Starling) ने सन् 1903 में की थी। अर्नेस्ट एच स्टरलिंग (Ernest H Starling) ने सन् 1905 में हॉर्मोन शब्द का प्रयोग किया।
जन्तु हॉर्मोन्स का रसायनिक स्वभाव(Chemical Nature of Animal Hormones):–
विभिन्न ग्रन्थियों से स्रावित होने वाले विभिन्न जन्तु हॉर्मोन्स का रासायनिक स्वभाव भिन्न-भिन्न होता है। ये प्राय: प्रोटीन (Protein), पेप्टाइड (Peptide), स्टेरॉइड (Steroid), अमीनो अम्ल (Amino acids) या अमीनो अम्ल के व्युत्पन्न होते हैं। इनका आधार पदार्थ कोलेस्ट्राल होता है।
उदाहरण - एड्रीनल ग्रन्थियों से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन्स स्टीरॉइड्स व पीयूष ग्रन्थि से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन्स प्रोटीन्स होते हैं। इन दोनों से अलग थाइरॉइड ग्रन्थि से अमीनो अम्ल या अमीनो अम्ल के व्युत्पन्न हॉर्मोन्स के रूप में स्त्रावित होते हैं।
हॉर्मोन्स की विशेषताएँ (Characteristics of Hormones):–
हॉर्मोन्स की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
(i) हॉर्मोन्स कम अणुभार (Molecular weight) वाले और जल में घुलनशील अणु होते हैं।
(ii) हॉर्मोन्स कार्बनिक उत्प्रेरक हैं और ऊतकों में सहविकर (Coenzyme) की तरह कार्य करते हैं।
(iii) सभी हॉर्मोन्स प्लाज्मा कला के आर-पार आ जा सकते हैं।
(iv) हॉर्मोन्स ऊतक विशिष्टता दर्शाते हैं, किन्तु जाति विशिष्टता नहीं दर्शाते हैं।
(v) एक विशेष हॉर्मोन विशिष्ट अंग या कोशिका पर ही प्रभाव डालता है, जिसे लक्ष्य अंग या लक्ष्य कोशिका (Target organ or Target cell) कहते हैं और यह प्रक्रिया अंग विशिष्टता (Organ specificity) कहलाती है।
(vi) हॉर्मोन रासायनिक दूत (Chemical messenger) की तरह कार्य करते और उपापचयी क्रियाओं में सीधे भाग न लेकर उनकी क्रियाशीलता को प्रभावित करते हैं।
(vii) हॉर्मोन्स शरीर में संचित नहीं होते हैं। अतः इनका संश्लेषण शरीर में निरन्तर होता रहता है।
हॉर्मोन्स एवं एन्जाइम्स में अन्तर:–
हॉर्मोन्स | एन्जाइम्स |
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ये प्रोटीन, अमीनो अम्ल, स्टीरॉइड्स या इनके व्युत्पन्न होते हैं। | ये कोलॉइडल प्रकृति के प्रोटीन्स होते हैं। |
इनका अणुभार कम होता है। | इनका अणुभार बहुत अधिक होता है। |
क्रिया के पश्चात् हॉर्मोन्स नष्ट हो जाते हैं। इनका पुन: उपयोग नहीं होता है। | ये क्रिया के पश्चात् अपरिवर्तित रहते हैं। अतः इनका पुनः उपयोग किया जा सकता है। |
इनका वितरण रुधिर द्वारा होता है। | ये नलिकाओं द्वारा सम्बन्धित अंगों तक पहुंचते हैं। |
ये अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित होते हैं। | ये बहिःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा सावित होते हैं। |
rकुछ हार्मोन्स जल में अघुलनशील, परन्तु वसा में घुलनशील होते हैं। | सभी एन्जाइम्स जल में घुलनशील होते हैं। |
हॉर्मोन्स के कार्य की क्रियाविधि(Mechanism of Hormone Action):–
हॉर्मोन्स निम्न तीन प्रकार से क्रिया करते हैं
(i) कोशिका कला की पारगम्यता में परिवर्तन करके हॉर्मोन्स पश्च युग्मानुबन्धन कलाओं (Post synaptic membranes ) के ग्राही अणुओं के साथ जुड़कर उनकी प्रोटीन संरचनाओं में बदलाव करके कोशिका कला की पारगम्यता को विभिन्न आयनों के प्रति बदल देते हैं, जिससे की दर बदल जाती है।
(ii) द्वितीय सन्देशवाहक के माध्यम से उपापचय में परिवर्तन करके कुछ हॉर्मोन्स कोशिका कला में उपस्थित ग्राही अणुओं के साथ जुड़कर कोशिका कला में उपस्थित विकरों (Enzymes) को सक्रिय अथवा निष्क्रिय करते हैं, जिससे कोशिकाओं की क्रियाशीलता प्रभावित होती हैं।
(iii) जीन स्तर पर परिवर्तन करके अधिकांश हॉर्मोन (जैसे-स्टीरॉइड हॉर्मोन) कोशिका में उपस्थित प्रोटीन ग्राही अणुओं के साथ जुड़कर हॉर्मोन ग्राही कॉम्प्लैक्स बनाते हैं। ये हॉर्मोन्स अणु कोशिका के केन्द्रक में पहुँचकर सुप्त जीन को सक्रिय या सक्रिय जीन को सुप्त कर देते हैं, जिससे प्रोटीन संश्लेषण की दर प्रभावित होती है।
मानव की अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ(Endocrine Glands of Human):-
मानव शरीर में पाई जाने वाली मुख्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों तथा उनकी स्थिति नीचे दिए गए चित्र द्वारा समझ सकते हैं
पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland):–
यह ग्रन्थि अग्र मस्तिष्क के पश्च अधर भाग में डाइएनसिफैलॉन (Diencephalon ) नामक संरचना की निचली सतह पर हाइपोफाइसिस (Hypophysis) से जुड़ी रहती है। पुरुष में यह मक्का के दानों के समान गोल, श्री-लाल, सबसे छोटी लगभग (1-14 सेमी व्यास की) होती है एवं स्त्रियों में आकार में कुछ बड़ी तथा गर्भावस्था में काफी बढ़ी होती है। यह अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की स्रावण क्रिया का नियन्त्रण एवं उसका नियमन करती है, इसलिए इसे मास्टर ग्रन्थि (Master gland) भी कहते हैं।
संरचनात्मक दृष्टि से यह ग्रन्थि तीन पिण्डों से निर्मित होती है
1. अग्र पिण्ड ( Pars Distalis or Adenohypophysis)
2. मध्य पिण्ड (Pars Intermedia or Intermediate Lob)
3. पश्च पिण्ड (Pars Nervosa or Neurohypophysis)
अग्र पिण्ड से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स :–
अग्र पिण्ड से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स निम्नलिखित हैं
(i) सोमैटोट्रॉपिक हॉर्मोन (Somatotropic Hormone H इसे वृद्धि हॉर्मोन (GH or Growth Hormone) हते हैं। यह ऊतकों तथा हड्डी की वृद्धि को नियन्त्रित करता है एवन संश्लेषण को भी प्रभावित करता है। इसके अल्प स्त्रावण (Hypiretion) से व्यक्ति बौना (Dwarf) तथा अति स्रावण (Hyperetion) से भीमकाय (Giant) हो जाता है। यह रोग प्रातिकायता (Acromegaly) भी कहलाता है।
(ii) थाइरॉइड प्रेरक या थाइरोट्रॉपिक हॉर्मोन (Thyroōtimulating Hormone or Thyrotropic Hormone or TF यह थाइरॉइड ग्रन्थि की वृद्धि तथा स्रावण को उत्तेजित करता है।
(iii) एड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हॉर्मोन (Adrenocorticopin Hormone or ACTH) यह एड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टिकल भाग सॅमॉन के स्राव को नियमित करता है। इसकी अधिकता से रीनल कॉर्टेड (Renal cortex) में अधिक वृद्धि तथा कमी से एड्रीनल ग्रन्थि नष्ट जाती है।
(iv) गोनैडोट्रॉपिक हॉर्मोन (Gonadotrophic Horme or GTH) ये हॉर्मोन्स लैंगिक परिपक्वता एवं लैंगिक कार्यों कोभावित करते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं
(a) पुटिका प्रेरक हॉर्मोन (Follicle Stimuting Hormone or FSH) यह हॉर्मोन मादा में अण्डाशय ग्रैफियन पुटिकाओं (Graafian follicle) की वृद्धि एवं अण्जनन को प्रेरित करता है। तथा मादा हॉर्मोन एस्ट्रोजन के स्राव को प्रेरित करता है। यह नर में शुक्राणुओं के निर्माण को उत्तेजित करता है।
(b) ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (Luteinizing Hormone or LH) यह मानव में गौण या द्वितीयक लैंगिक क्षणों को विकसित करने का कार्य करते हैं।
(c) प्रोलैक्टिन या मैमोट्रॉपिक हॉर्मोन (Prolactin or Mammotropic Hormone or PRL or MTH) मादा में गर्भकाल के समय अधिक मात्रा में स्रावित होकर यह स्तनों में वृद्धि को प्रेरित करता है तथा शिशु जन्म के बाद यह दुग्ध के स्रावण को प्रेरित करता है।
मध्य पिण्ड से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स:–
पीयूष ग्रन्थि के मध्य पिण्ड से मात्र एक ही हॉर्मोन मिलैनोसाइट्स प्रेरक हॉर्मोन (Melanocytes Stimulating Hormone or MSH) स्रावित होता है। यह निम्न कशेरुकियों में त्वचा के रंग को गहरा कर देता है। मनुष्य में यह त्वचा पर चकते, तिल, आदि बनने को ही प्रेरित करता है।
पश्च पिण्ड से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स:–
इन हॉर्मोन्स को सम्मिलित रूप से पिट्यूट्रिन (Pituitrin) कहते हैं। पश्च पिण्ड से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन्स निम्नलिखित हैं
(1) वैसोप्रेसिन हॉर्मोन (Vasopressin Hormone) इसे एन्टीडाइयूरेटिक हॉर्मोन (Antidiuretic Hormone or ADH) भी कहते हैं। यह वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ भाग में जल अवशोषण को बढ़ाता है, इस प्रकार यह मूत्र की मात्रा को नियन्त्रित करता है।
(ii) ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन (Oxytocin Hormone) यह शिशु जन्म के समय गर्भाशय की पेशियों में संकुचन प्रेरित कर प्रसव वेदना उत्पन्न करता है तथा साथ ही स्तनों की पेशियों में संकुचन प्रेरित कर दुग्ध स्रावण को भी प्रेरित करता है।
थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid Gland):–
यह ग्रन्थि स्वर यन्त्र (Larynx) के पार्श्व-अधर तल पर स्थित द्विपालित (Bilobed) संरचना होती है। यह 'H' आकृति की होती है। मनुष्य में इसका भार लगभग 25-30 ग्राम होता है। यह मुख्य रूप से थाइरॉक्सिन या थाइरॉइड हॉर्मोन (Thyroxin or thyroid hormone) स्त्रावित करती है, जोकि मुख्यतया आयोडीन का उत्पाद है। यह हॉर्मोन शरीर की उपापचयी (Metabolic) क्रियाओं का नियमन तथा नियन्त्रण करता है।
इसके प्रमुख कार्य आधारीय उपापचय दर (BMR) को नियन्त्रित करना, प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis), ग्लूकोस के उपयोग एवं हृदय स्पन्दन की दर को बढ़ाता है। इसकी कमी से हृदय की गति धीमी, शरीर सुस्त एवं मस्तिष्क दुर्बल हो जाता है।
थाइरॉक्सिन के अल्पस्रावण से होने वाले रोग:–
थाइरॉक्सिन के अल्पस्रावण को हाइपोथाइरॉइडिज्म (Hypothyroidism) कहते हैं। इसके अल्पस्त्रावण से निम्न रोग हो जाते हैं
(i) जड़वामनता रोग (Cretinism Disease) बाल्यावस्था में इस हॉर्मोन की कमी होने से बच्चों में बौनापन तथा कुरुपता आ जाती है।
(ii) मिग्सीडेमा रोग (Myxoedema Disease) यह वयस्कों में होता है। इस रोग में बुढ़ापे के लक्षण है, बाल झड़ने लगते हैं। इसमें व्यक्तियों की आवाज भारी, मस्तिष्क कमजोर तथा जनन क्षमता कम हो जाती है।
(iii) हाशीमोटो (Hashimoto Disease) इस हॉर्मोन की अत्यधिक कमी से अनेक औषधियाँ शरीर पर प्रतिविष के समान कार्य करती हैं तथा थाइरॉइड ग्रन्थि को नष्ट कर देती है।
(iv) सामान्य घेंघा रोग (Simple Goitre Disease) भोजन अथवा नमक में आयोडीन की कमी होने से थाइरॉइड ग्रन्थि फूलकर बड़ी हो जाती है।
थाइरॉक्सिन के अतिस्रावण से होने वाले रोग:–
थाइरॉक्सिन के अतिस्रावण को हाइपरथाइरॉइडिज्म (Hyperthyroidism) कहते हैं।
इसके अतिस्रावण से निम्नलिखित रोग हो सकते हैं
(i) नेत्रोत्सेंधी घेंघा (Exophthalmic Goitre) इस रोग में रोगी के नेत्र चौड़े तथा नेत्र गोलक के नीचे श्लेष्म के संचित हो जाने से ये बाहर की तरफ उभरे नजर आते हैं।
(ii) प्लूमर का रोग (Plummer's Disease) इस रोग में थाइरॉइड ग्रन्थि में जगह-जगह गाँठें बन जाती हैं तथा ग्रन्थि फूल जाती है।
(iii) ग्रेव का रोग (Grave's Disease) इस रोग में थाइरॉइड समान रूप से वृद्धि कर फूल जाती है।
थाइरॉक्सिन के अलावा यह ग्रन्थि थाइरोकैल्सिटोनिन (Thyrocalcitonin) हॉर्मोन भी स्रावित करती है, जोकि एक प्रोटीन है तथा मूत्र में कैल्शियम की मात्रा का नियमन करता है।
पैराथाइरॉइड ग्रन्थि (Parathyroid Glands):–
थाइरॉइड ग्रन्थि के पृष्ठ तल पर चार ( दो जोड़ी) अण्डाकार पैराथाइरॉइड ग्रन्थियाँ स्थित होती हैं। इससे निम्न दो हार्मोन्स स्त्रावित होते हैं, जो निम्नलिखित हैं
(i) पैराथॉर्मोन (Parathormone) या कॉलिप का हार्मोन (Collip's Hormone) ये पेशियों की क्रियाशीलता, हड्डी व दाँत निर्माण तथा रुधिर स्कन्दन का नियमन करता है तथा यह हॉर्मोन Ca²+ के अवशोषण व PO-⁴ के उपापचय पर नियन्त्रण रखता है। इसकी कमी या अधिकता की पहचान हड्डियों के टेढ़ेपन से होती है।
इसकी कमी से हाइपोकैल्सिमिया (Hypocalcemia - रुधिर में कैल्शियम की कमी) तथा हाइपरफॉस्फेटीमिया (Hyperphos- phatemia - रुधिर में फॉस्फोरस की अधिकता) की स्थिति होती है। इसके अतिस्रावण से ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis-अस्थियाँ कोमल व कमजोर) रोग हो जाता है।
(ii) कैल्सिटोनिन हॉर्मोन (Calcitonin Hormone) यह मूत्र में कैल्शियम के उत्सर्जन को बढ़ाता है।
अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal Gland):–
यह उदर में वृक्क के अग्रसिरे पर स्थित होती है। यह संख्या में एक जोड़ी होती हैं। वृक्क की ही भाँति अधिवृक्क ग्रन्थि के भी दो भाग होते हैं
1. बाहरी भाग
2. भीतरी भाग मध्यांश (Medulla)
अधिवृक्क वल्कुट (Adrenal cortex):–
अधिवृक्क ग्रन्थि में वल्कुट भाग ग्रन्थि का लगभग 90% भाग है। इसके द्वारा स्वावित सभी हॉर्मोन्स स्टीरॉइड (Steroid) होते हैं।
इससे स्त्रावित हॉर्मोन्स को निम्नलिखित तीन समूहों में बाँटा गया है
(i) ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स (Glucocorticoids) इसमें कॉर्टिसोल (Cortisol) तथा कॉर्टिकोस्टेरॉन (Corticosteron) नामक हॉर्मोन मुख्य है। इसका मुख्य कार्य शरीर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा उपापचय का नियन्त्रण करना तथा रुधिर में लाल रुधिराणुओं (RBCs) की संख्या को बढ़ाना है।
(ii) मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स (Mineralocorticoids) इसमें ऐल्डोस्टेरॉन (Aldosterone) नामक हॉर्मोन मुख्य है। इनका प्रमुख कार्य रुधिर में सोडियम, पोटैशियम, क्लोराइड, आदि खनिज आयनों की मात्रा का नियन्त्रण करना है।
(iii) लिंग हॉर्मोन्स (Sex Hormones) अधिवृक्क ग्रन्थि के वल्कुट भाग से कुछ मात्रा में निम्न नर व मादा लिंग हॉर्मोन्स भी स्रावित होते हैं। यह निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं।
(a) एण्ड्रोजन्स (Androgens) ये नर लिंग हॉर्मोन हैं। इनकी सूक्ष्ममात्रा स्त्रियों में पेशियों के विकास में सहायता करती है।
(b) एस्ट्रोजन (Oestrogen) यह मादा लिंग हॉर्मोन है। मादा में जनन अंगों के विकास में सहायक है तथा इनकी सूक्ष्म मात्रा पुरुष में वसा संश्लेषण में सहायक होती है।
अधिवृक्क मध्यांश (Adrenal Medulla):–
अधिवृक्क ग्रन्थि का 10% भाग बनाता है तथा दो प्रकार के हॉर्मोन्स का स्रावण करता है
(i) एड्रिनॅलिन या एपिनेफ्रिन (Adrenaline or Epinephrine) यह मध्यांश भाग का मुख्य हॉर्मोन होता है तथा ग्लूकोजेनोलाइसिस व वसा के विघटन को प्रेरित करता है। रुधिर दाब में वृद्धि करना, श्वसन दर तथा आधारीय उपाचय दर बढ़ाना, श्वसन सुगम बनाना, त्वचा में रोंगटे खड़े करना, रुधिर में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाना या सक्रियता (तेजी), पसीना बढ़ाना इसके मुख्य कार्य है।
यह संकट की स्थिति में शरीर को उम्र प्रतिक्रिया के लिए करता है। अतः इसे संकटकालीन या आपातकालीन हॉर्मो फ्लाइट हॉर्मोन या F3 (Emergency hormone or Frightht and Fight) कहते हैं।
(ii) नॉरऍड्रिनैलिन या नॉरएपिनेफ्रिन (Noradrne or Norepinephrine) यह कम मात्रा में उपस्थित होता है धिर शर्करा को शीघ्रता से बढ़ाता है। हृदय की संकुचनशीलता पर निर करता है। यह हॉर्मोन एपिनेफ्रिन या एड्रिनलिन हॉर्मोन के विपरीत करता है।
अधिवृक्क हॉर्मोन्स के अल्पस्रावण से होने वाले रोग:–
इसके अल्पस्रावण से होने वाले रोग निम्न हैं
(i) कॉन्स रोग (Conn's Disease) इसमें मिन्कॉर्टिकॉएड्स (Mineralocorticoids) की कमी से सोडियम व पोटैन का सन्तुलन बिगड़ जाता है। तन्त्रिका नियन्त्रण बिगड़ जाता है। पेर्सि अकड़न आ जाती है तथा मरीज की मृत्यु तक भी हो सकती हैं।
(ii) हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) ग्लुकोकॉल्ड्स की कमी से रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा कम हो जाती है। पेशिभस्तिष्क, यकृत, आदि की क्रियाएँ शिथिल हो जाती हैं तथा उपापन्दर भी कम हो जाती है।
(iii) एडीसन रोग (Addison's Disease) इस रोग में रहकॉटिकॉएड्स के अल्पस्राव से कोशिकाओं में निर्जलीकरण हो जातं, जिसके कारण रुधिर दाब घट जाता है, सोडियम तथा जल का उत्स अधिक हो जाता त्वचा पर कास्य रंग के चकते पड़ जाते हैं तमेशियाँ शिथिल हो जाती हैं।
इस रोग का पता थॉमस एडीसन (Thomas Adion) ने लगाया था। इन्हें अन्त:स्रावी विज्ञान (Endocrinology) का पिता भी कहा जाता है।
अधिवृक्क हॉर्मोन्स के अतिस्रावण से होने वा रोग:–
इसके अतिस्रावण से होने वाले रोग निम्न हैं
(i) कुशिंग रोग (Cushing's Disease) यह रोग कोकॉर्टिकॉएड्स तथा मिनरलोकॉर्टिकॉएड्स के अतिस्रावण से होता है।समें वक्ष भाग में वसा का असामान्य जमाव हो जाता है, प्रोटीन अपत्र तथा रुधिर दाब बढ़ जाता है, पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं तथा शरीर जल तथा सोडियम का जमाव अधिक हो जाता है।
(ii) एड्रीनल विरिलज्म (Adrenal Virilism) इस लिंग हॉर्मोन का अधिक स्राव होने से स्त्रियों में पुरुषोचित लक्षण उत्पन्न्होने लगते हैं; जैसे-चेहरे पर दाढ़ी, मूँछ का उग जाना, आवाज भारी हो जाना, आदि। बाल्यावस्था में नर लिंग हॉर्मोन्स की अधिकता से समय से पहले लैंगिक परिपक्वन हो जाता है।
पिनियल काय (Pineal Body):–
यह छोटी, चपटी, सफेद ग्रन्थि है, जो अग्रमस्तिष्क में डाइएनसिफैलॉन के मध्य पृष्ठतल पर एक खोखले वृन्त पर स्थित होती है। इसे एपिफाइसिस सेरेब्राई (Epiphysis cerebri) के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रन्थि मिलैटोनिन (Melatonin) नामक हॉर्मोन का स्रावण करती है, जोकि वृषण तथा अण्डाशय की वृद्धि को प्रभावित करता है। इस हॉर्मोन का स्रावण मन्द सूर्य के प्रकाश में अधिक होता है। अन्धे व्यक्तियों में आँखों द्वारा सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाने की वजह से इस हॉर्मोन का स्रावण अधिक होता है तथा समय से पहले लैंगिक परिपक्वन हो जाता है।
नोट: यदि पिनियल काय को शरीर से निकाल दिया जाए, तो अण्डाशयों की वृद्धि रुक जाती है।
थाइमस ग्रन्थि (Thymus Gland):–
यह हृदय के आगे चपटी तथा द्विपिण्डकीय (Bilobed) रूप में स्थित होती है। यह शिशुओं में विकसित तथा वयस्कों में छोटी होकर लुप्त हो जाती है। इसके पिण्डकों द्वारा थाइमोसिन (Thymocin) नामक हॉर्मोन स्रावित होता है। यह लिम्फोसाइट तथा प्रतिरक्षी पदार्थों का निर्माण करके हमारी विभिन्न संक्रमित रोगों से सुरक्षा करती है।
अग्न्याशय (Pancreas):–
यह एक मिश्रित ग्रन्थि है। इसका बहिःस्रावी भाग अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juicy) को स्रावित करता है, जो पाचन में सहायक है। इसका अन्तःस्रावी भाग लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans) होती है, जो इन्सुलिन एवं ग्लूकैगॉन (Insulin or glucagon) नामक हॉर्मोन का स्त्रावण करती है।
लैंगरहैन्स की द्वीपेकाओं में उपस्थित कोशिकाएँ एवं उनका कार्य:–
(i) बीटा कोशिका (β- cells) ये आकार में बड़ी होती हैं तथा 70% भाग में स्थित होती है ये इन्सुलिन हॉर्मोन का स्रावण करती हैं।
इन्सुलिन (Instin) ये ऊतकों, विशेषकर पेशियों में कार्बोहाइड्रेट्स के उपयोग पर नियत्रण, शर्करा का नियमन तथा यकृत कोशिकाओं में ग्लाइकोजेनेसिस (Glycogenesis) को प्रेरित करता है। ग्लाइकोजेनेसिस व अर्थ शरीर में आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदलना होता है। यह ग्लाइकोजन यकृत में संचित हो जाता है। रुधिर में शर्करा की सामान्य मात्रा लगभग 0.1% होती है। यह शर्करा से वसा संश्लेषण को भी प्रेरित करता है।
इन्सुलिन के अल्पस्राव से रुधिर में ग्लूकोस (शर्करा) की प्रतिशत मात्रा बढ़ जाने से होने वला रोग डायबिटीज (मधुमेह) है। यह एक उपापचयी रोग विकार है। इस रोग में रोगी बहुत अधिक मात्रा में मूत्र त्याग करता है तथा शरीर का भार काफी तीव्र मात्रा में घटने लगता है।
नोट: रुधिर में शर्करा के स्तर को नियन्त्रित करने के लिए कुछ मधुमेह रोगी को इन्सुलिन का इन्जेक्शन दिया जाता है।
(ii) एल्फा-कोशिकाएँ (α-cells) ये 20% भाग में स्थित रहती हैं। इनके द्वारा ग्लूकैगॉन हॉर्मोन का स्रावण किया जाता है।
ग्लूकैगॉन (Glucagon) रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा कम होने पर इसका स्रावण होता है। यह आवश्यकता पड़ने पर यकृत में संचित ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदलता है। कैल्शियम आयन (Ca2+) का नियमन भी करता है।
(iii) डेल्टा या गामा कोशिकाएँ (δ और y -cells) ये आकार में छोटी तथा 5% • भाग में फैली रहती हैं। इनके द्वारा सोमैटोस्टैटिन (Somatostatin-SS) तथा वृद्धि हॉर्मोन रोधक (Growth hormone inhibiting) हॉर्मोन का स्त्रावण किया जाता है।
जनद (Gonads):–
नर में जनद के रूप में एक जोड़ी वृषण (Testis) तथा मादा में एक जोड़ी अण्डाशय (Ovaries) पाए जाते हैं।
इनका विवरण निम्नलिखित हैं
(i) वृषण (Testes) पुरुषों में वृषण (युग्मित) की अन्तराली या लीडिंग कोशिकाएँ (Interstitial or Leydig cells), नर हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन या एण्ड्रोस्टेरॉन (Testosterone or Androsterone) हॉर्मोन का स्रावण करती हैं। यह हॉर्मोन नर में जनन क्षमता बढ़ाने के अतिरिक्त शुक्राणुओं की परिपक्वता तथा द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास करते हैं।
(ii) अण्डाशय (Ovaries) अण्डाशय (युग्मित) से तीन प्रकार के हॉर्मोन्स स्त्रावित होते हैं
(a) एस्ट्रोजन (Oestrogen) यह नारीत्व विकास हॉर्मोन भी कहलाता है, जो ग्राफियन पुटिकाओं की कोशिकाओं से स्त्रावित होते हैं और स्त्रियों के प्राथमिक एवं द्वितीयक लैंगिक लक्षणों को नियन्त्रित करते हैं।
(b) प्रोजेस्टेरॉन (Progesterone) इसका स्राव अण्डाशय के कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus luteum) नामक ग्रन्थि से होता है। यह ग्रन्थि अण्डोत्सर्ग (Ovulation) के बाद ग्राफियन पुटिका से विकसित होती हैं। प्रोजेस्टेरॉन का कार्य गर्भाशय को गर्भधारण (Pregnancy) के लिए तैयार करना है।
(c) रिलैक्सिन (Relaxin) यह कॉपर्स ल्यूटियम से स्रावित होने वाला हॉर्मोन है, जिसका कार्य शिशु के जन्म को सुगम बनाना होता है।
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