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अध्याय 6 मानव नेत्र एवं दृष्टि दोष (human eye and defects of vision)

 अध्याय 6
मानव नेत्र एवं दृष्टि दोष (human eye and defects of vision)

मानव नेत्र(human eye):-

मानव नेत्र प्रकृति की एक अत्यंत मूल्यवान देन है जो हमें इस अद्भुत संसार तथा हमारे चारों ओर के रंगों को देखने योग्य(able) बनाती है। मानव नेत्र की सहायता से मनुष्य पास व दूर की वस्तुओ को आसानी से देखा सकता है। यह एक प्रकाश संवेदी(light sensitive) अंग है।



मानव नेत्र की संरचना (structure of human eye):-

मानव नेत्र के निम्नलिखित भाग होते हैं
1. दृढ़ पटल : मानव नेत्र एक खोखले गोले की भांति होता है जिसका व्यास लगभग 25 मिमी होता है तथा जो बाहर से दृढ़ अपारदर्शी स्वेत परत से ढका होता है। यह अपारदर्शी परत दृढ़ पटल कहलाती हैं।

2. रक्तक पटल: स्वेत परत के भीतरी पृष्ठ से लगी हुई अंदर की ओर एक काले रंग की झिल्ली(Membrane) होती है, जिसे रक्तक पटल कहते हैं।

3. कार्निया:  नेत्र गोलक के सामने का भाग कुछ उभरा तथा पारदर्शक होता है, इस भाग को कार्निया कहते हैं।

4.  आइरिस:  कार्निया के पीछे एक रंगीना अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है जिसे आइरिस कहते हैं।

5. पुतली: आइरिस के मध्य में एक छिद्र होता है जिसे पुतली या नेत्र तारा कहते हैं।

6. नेत्र लेंस:  आइरिस के पीछे प्रोटीन का बना पारदर्शी तथा मुलायम पदार्थ का एक द्वि उत्तल लेंस होता है, जिसे नेत्र लेंस कहते हैं। लेंस का अपवर्तनांक लगभग 1.44 होता है।

7. पक्ष्माभी मांसपेशियां: नेत्र लेंस मांसपेशियों की सहायता से अपने स्थान पर टिका रहता है जिन्हें पक्ष्माभी मांसपेशियां कहते हैं।

8.रेटिना: रक्तक पटल के नीचे तथा नेत्र के सबसे आंतरिक भाग में दृष्टि नाड़ियां (optic nerves) से बना एक पर्दा होता है जिसे रेटिना या दृष्टि पटल कहते हैं ।

9.जलीय द्रव:  कार्निया और नेत्र लेंस के मध्य एक नमकीन पारदर्शी द्रव भरा रहता है। इस द्रव को जलीय द्रव कहते हैं।

10. कांचाभ द्रव: इस प्रकार नेत्र लेंस और रेटिना के मध्य भी एक पारदर्शक द्रव भरा रहता है जिसे कांचाभ द्रव कहते हैं।

11. पीत बिन्दु: रेटिना के केन्द्र के पास एक गोल पीला बिन्दु होता है, जिसे पीत बिन्दु कहते हैं।

12.अन्ध बिन्दु:  जिस बिन्दु से दृष्टि नाड़ियां मस्तिष्क को जाती है उस बिंदु को अन्ध बिन्दु कहते हैं।

मानव नेत्र द्वारा प्रतिबिंब का बनना(formation of image by human eye):-

किसी वस्तु से चलने वाली प्रकाश की किरणें सर्वप्रथम नेत्र के कार्निया पर आपतित होती हैं तथा अपवतित होकर क्रमश: जलीय द्रव, नेत्र लेंस तथा कांचाभ द्रव  में से होती हुई रेटिना पर पहुंचती है जहां पर वस्तु का वास्तविक व उल्टा प्रतिबिंब बनता है। प्रतिबिंब के बनने का संदेश प्रकाश तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिक में पहुंचता है जिससे मस्तिष्क अनुभव के आधार पर यह प्रतिबिंब सीधा दिखाई देता है।



नेत्र लेंस की फोकस दूरी(focal length of eye lens):-

मानव नेत्र द्वारा स्थित वस्तु को देखने के लिए नेत्र पर गिरने वाले नेत्र लेंस द्वारा रेटिना पर फोकस होती है तथा वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देता है। मानव नेत्र के रेटिना के मध्य की दूरी को नेत्र लेंस की फोकस दूरी कहते हैं। नेत्र लेंस की फोकस दूरी परिवर्तनशील होती है।

मानव नेत्र की समंजन क्षमता (Accommodation power of human eye):-

मांसपेशियों द्वारा नेत्र लेंस की फोकस दूरी  आवश्यकता अनुसार परिवर्तित करने की क्षमता को नेत्र की समंजन क्षमता कहते हैं।



नेत्र का दूर बिंदु :–

नेत्र से अधिकतम दूरी पर स्थित वह बिंदु जिसे नेत्र बिना समंजन क्षमता के स्पष्ट देख सकता है, दूर बिन्दु कहलाता है। इस बिन्दु से नेत्र तक की दूरी स्पष्ट दृष्टि की अधिकतम दूरी के लाती है। स्वास्थ्य मनुष्य के लिए इसका मान अनंत होता है।

नेत्र का निकट बिन्दु:-

वह निकटतम बिंदु जिसे नेत्र अपनी अधिकतम समंजन क्षमता लगाकर स्पष्ट देख सकता है नेत्र का निकट बिंदु कहलाता है। स्वास्थ्य नेत्र के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेंटीमीटर होती है ।

निकट दृष्टि दोष(short sightedness or Myopia):-

निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति को निकट की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं। परंतु दूर की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। इस दोष युक्त नेत्र का दूर बिंदु अनंत पर न होकर पास आ जाता है। अतः व्यक्ति दूर बिंदु से अधिक दूरी पर स्थित वस्तुओं का स्पष्टत: नहीं देख पाता।



निकट दृष्टि दोष के कारण(cause of Myopia):-

(i) नेत्र लेंस की वक्रता का बढ़ जाना जिससे उसकी फोकस दूरी कम हो जाती है।
(ii) नेत्र लेंस की गोलक का व्यास बढ़ जाना।

इस दोष के कारण अनंत पर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर फोकस न होकर,  रेटिना के सामने कुछ पहले फोकस हो जाता है। इस कारण अनंत पर स्थित वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।

निवारण(Rectification):–

निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए उचित फोकस दूरी वाले अवतल लेंस के चश्मे का प्रयोग किया जाता है जिससे अनंत दूरी से चलने वाली प्रकाश किरणे अवतल लेंस से अपवर्तन के पश्चात नेत्र की दूर बिंदु से आती हुई प्रतीत होती हैं जिससे ये किरणें रेटिना पर फोकस हो जाती है। इस प्रकार प्रतिबिंब रेटिना पर बन जाता है और वस्तु स्पष्ट दिखाई देता है।



दूर दृष्टि दोष(long sightedness or hypermetropia):-

दूर दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति को दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु निकट की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। इस दोषयुक्त नेत्र का 25 सेंटीमीटर से अधिक दूर हो जाता है। अतः व्यक्ति को 25 cm तथा उससे निकट स्थित वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं।



दूर दृष्टि दोष के कारण(cause of hypermetropia):-

(i) नेत्र लेंस की वक्रता का कम हो जाना जिससे उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है।
(ii) नेत्र की मांसपेशियों के क्षीण हो जाने से नेत्र गोलक के व्यास का कम हो जाना।

इस दोष के कारण अनंत पर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर फोकस न होकर रेटिना के पीछे फोकस हो जाता है जिस कारण वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।

निवारण(Rectification):-

दूर दृष्टि दोष को दूर करने के लिए उचित फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस के चश्में का प्रयोग किया जाता है जिससे दूर स्थित वस्तु से चलने वाली प्रकाश किरणें उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात नेत्र के निकट बिंदु से आती हुई प्रतीत होती हैं । ये किरणें अपवर्तित होकर रेटिना पर फोकस हो जाती हैं जिससे प्रतिबिंब रेटिना पर बनता है तथा वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है।



जरा दूरदृष्टिता(presbyopia):–

आयु में वृद्धि के साथ-साथ नेत्र की मांसपेशियां दुर्बल हो जाती हैं जिस कारण नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती है जिससे व्यक्ति को दूर अथवा निकट या दोनों ही स्थानों की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। इसे जरा दूरदृष्टिता कहते हैं।

जरा दूरदृष्टिता का कारण(cause of presbyopia):-

पक्ष्माभी मांसपेशियों की शक्ति में कमी तथा नेत्र लेंस के लचीलेपन में कमी आ जाने के कारण नेत्र में जरा दूरदृष्टिता दोष हो जाता है।

निवारण(rectification):–

जरा दूरदृष्टिता को दूर करने के लिए द्विफोकसी लेंसों का उपयोग किया जाता है। द्विफोकसी लेंसों में अवतल तथा उत्तल दोनों लेंस होते हैं। चश्मे के ऊपरी भाग में अवतल लेंस होता है जो दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देखने में सहायता करता है तथा निचले भाग में उत्तल लेंस होता है जो पास की वस्तुओं को अस्पष्ट देखने में सहायता करता है।

अबिंदुकता:–

इस दोष में सामान दूरी पर रखी क्षैतिज और उर्द्वाधर वस्तुएं एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती है इस दोष के कारण एक ही दूरी पर रखी क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर वस्तु रेटिना पर एक साथ फोकस नहीं होती।

अबिंदुकता का कारण:-


कार्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण नेत्र में यह दोष हो जाता है।

निवारण:–

इस दोष के निवारण हेतु उचित फोकस दूरी अथवा वक्रता त्रिज्या वाले बेलनाकार लेंसों का प्रयोग किया जाता है।

वर्णांधता:–

इस प्रकार के दोष में मनुष्य के नेत्र कुछ निश्चित रंगों के प्रति ही सुग्राही होते हैं इस दोष से पीड़ित व्यक्ति ठीक प्रकार से देख तो सकते हैं परंतु कुछ निश्चित रंगों में अंतर नहीं कर पाते या दोष मनुष्य की आंख में जन्मजात होता है तथा इसका कोई उपचार नहीं होता।

वर्णांधता का कारण:–

मनुष्य की आंखों में शंक्वाकार कोशिकाओं की कमी के कारण यह दोष होता है जो जिनकी अनियमितता के कारण होता है।












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