Header Ads Widget

सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजू पर कुंजर गामी।। चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरी तन भए सुखारी।।

 सहजहिं चले सकल जग स्वामी।

मत्त मंजू पर कुंजर गामी।।

चलत राम सब पुर नर नारी।

 पुलक पूरी तन भए सुखारी।।

 बंदि पितर सूर सुकृत संभारे।

 जों कछु पुण्य प्रभाउ हमारे।।

 तो सिवधनु मृनाल की नाई।

 तोरहूं रामु गनेश गोसाई।।

संदर्भ:–

 प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।


 प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में श्रीराम द्वारा धनुष भंग के लिए जनकपुरी के नर– नारियों की मनोकामना को पूर्ण करने हेतु देवताओं की वंदना कराकर श्रीराम के प्रभुत्व रूप का वर्णन किया गया है।

 व्याख्या :–

संपूर्ण जग के स्वामी श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र जी के चरणों की वंदना कर तथा अन्य मुनियों की आज्ञा प्राप्त करके सुंदर मतवाले हाथी की भांति मस्त चाल से धनुष की और स्वाभाविक रूप से बढ़ रहे हैं। श्री राम ने धनुष की ओर बढ़ते ही जनकपुरी के सभी नर नारी सुख का अनुभव करते हुए आनंदित है, जिससे उनका शरीर रोमांच से भर गया। जनकपुरी के नर –नारियों ने अपने पूर्वजों तथा देवताओं की वंदना कर अपने पुण्यों का स्मरण किया कि यदि हमारे द्वारा किए गए पुण्यों का तनिक भी प्रभाव होता तो हे गणेश गुसाई! श्री राम शिव धनुष को कमल की नाल समान सहज ही तोड़ डाले।

काव्य गत सौंदर्य:–

 भाषा – अवधी।    शैली –प्रबंध और विवेचनात्मक 

गुण –माधुर्य ।         रस –श्रृंगार

छंद –दोहा ।           अलंकार –अनुप्रास अलंकार ,

                                          उपमा अलंकार 








Post a Comment

0 Comments