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सखि सब कोतुकु देखनिहारे। जेउ कहावत हितू हमारे।। कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाही। ए बालक असि हठ भलि नाही ।।

 

सखि सब कोतुकु देखनिहारे।
जेउ कहावत हितू हमारे।।
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाही।
ए बालक असि हठ भलि नाही ।।
रावन बान छुआ नहि चापा।
हारे सकल भूप करि दापा ।।
सो धनु राजकुअंर कर देही।
बाल मराल कि मंदर लेही ।।

संदर्भ:–

प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।

प्रसंग:–

प्रस्तुत पद्यांश में सीता जी की माता का राम के प्रति चिंता का वर्णन है। श्री राम की कोमलता को देखकर उनका मन चिंतित है।जब शक्तिशाली राजा इस धनुष को हिला तक नहीं सके, तब यह बालक इस धनुष को कैसे तोड़ पाएगा?

व्याख्या:–

सीताजी की माता अपनी सखियों से कहती हैं कि हे सखी! जो लोग हमारे हितैषी कहलाते हैं, वे सभी तमाशा देखने वाले हैं। क्या इनमें से कोई भी राम के गुरु विश्वामित्र को समझने के लिए जाएगा कि ये (राम) अभी बालक है। इस धनुष को तोड़ने के लिए हठ (जिद) करना अच्छा नहीं अर्थात इस धनुष को बड़े बड़े योद्धा हिला तक नहीं पाए।
धनुष को तोड़ने के लिए विश्वामित्र का आज्ञा देना और राम का आज्ञा मानकर चल देना तमाशे जैसा नहीं है। यह मेरी पुत्री का स्वयंवर है खेल नहीं, फिर इन्हें क्यों कोई नहीं समझता? इस धनुष की कठोरता के कारण रावण और बाणासुर जैसे वीर योद्धाओं ने इसे छुआ तक नहीं। सभी राजाओं का धनुष तोड़ने का घमंड टूट चुका है अर्थात सभी अपनी हार मान चुके हैं, तो धनुष को तोड़ने के लिए इस राजकुमार के हाथों में क्यों दे दिया है?
कोई इन्हे समझौता क्यों नहीं की क्या हंस का बच्चा कभी मंदराचल पहाड़ उठा सकता है अर्थात शिव जी के जिस धनुष को रावण और बाणासुर जैसे महान शक्तिशाली योद्धा छू तक नहीं सके, उसे तोड़ने के लिए विश्वामित्र का श्री राम को आज्ञा देना अनुचित है। श्री राम का भी उसे तोड़ने के लिए आगे बढ़ना बाल हठ है।

काव्य गत सौंदर्य
भाषा –अवधि।       शैली –प्रबंध और विवेचनात्मक
गुण –माधुर्य ।          रस –वात्सल्य
छंद –चौपाई।
अलंकार– अनुप्रास अलंकार तथा रूपक अलंकार।






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