रानी मैं जानी अजानी महा, पबि पाहन हूँ ते कठोर हियो है।
राजहु काज अकाज न जान्यो, कह्यो तिय को जिन कान कियो है।।
ऐसी मनोहर मूरित ये,बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो है?।
आंखिन में,सखि! राखिबे जोग , किमि कै बनवास दियो है?।।
संदर्भ:–
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के वन पथ पर शीर्षक से उद्धृत हैं। यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित कवितावली के अयोध्या कांड से लिया गया है।
प्रसंग:-
प्रस्तुत पद्यांश में ग्रामीण स्त्रियों के माध्यम से कैकेयी और राजा दशरथ की निष्ठुरता पर प्रतिक्रिया का वर्णन किया गया है।
व्याख्या:-
श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे हैं, उन्हें देखकर गांव की स्त्रियां आपस में बातें कर रही हैं। एक स्त्री दूसरी स्त्री से कहती है कि मुझे तो ज्ञात हो गया कि रानी के कैकेयी बड़ी अज्ञानी है। और पत्थर से भी कठोर हृदय वाली नारी हैं, क्योंकि उन्हें इन तीनों को वनवास देते समय तनिक भी दया नहीं आई। वह राजा दशरथ को बुद्धिहीन समझकर कहती हैं कि राजा दशरथ ने उचित-अनुचित का भी विचार ना कर अपनी पत्नी का कहा मान कर इन्हें वन में भेज दिया है। यह तीनों इतने मनोहर और सुंदर है कि इन्हें बिछुड़कर इनके प्रियजन कैसे जीवित रहेंगे? हे सखि! ये तीनों तो आंखों में बसने योग्य है अर्थात इनको अपने से दूर नहीं किया जा सकता। इन्हें वनवास क्यों दे दिया गया है?
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा - ब्रज। शैली - मुक्तक
गूण - माधुर्य। रस - श्रृंगार और करुण
छन्द - सवैया । शब्द शक्ति - अभिधा,लक्षणा एवं व्यंजना
अलंकार - अनुप्रास अलंकार।
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