तो भगवानु सकल उर बासी।
करिहि मोहि रघुवर के दासी।।
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।।
प्रभू तन चितई प्रेम तन ठाना।
कृपा निधान राम सबु जाना।।
सियहि बिलोकि तकेउ कैसे।
चितव गरुरू लघु ब्यालहि जैसे।।
सन्दर्भ:–
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।
प्रसंग:–
प्रस्तुत पद्यांश में सीता जी का श्री राम के प्रति पूर्ण रूप से अनुरक्त दृश्य का वर्णन किया गया है।
व्याख्या:–
तुलसीदास जी कहते हैं कि सीता जी ने श्री राम जी की और देखकर इस बात का निश्चय कर लिया कि सबके हृदय में निवास करने वाले भगवान श्रीराम मुझे अपनी दासी अवश्य बनाएंगे, क्योंकि जिसका जिस पर सच्चाई स्नेह प्रेम होता है, वह उसे अवश्य मिलता है ,इसमें कुछ भी संदेह नहीं होता है। प्रभु श्री राम को देखकर सीता जी ने अपने चितवन में उनके प्रति प्रेम ठान लिया अर्थात यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि यह हृदय केवल श्रीराम का वरण करेगा। उनकी इस मनोकामना को कृपा निधान भगवान राम ने भली भांति जान लिया, इसलिए श्री राम ने धनुष को बिल्कुल ऐसे देखा जैसे गरुड़ एक छोटे सांप को देखता है।
काव्य गत सौंदर्य
भाषा –अवधी। शैली –प्रबंध एवं चित्रातमक
गुण–प्रसाद । रस –श्रृंगार एवं भक्ति
शब्द शक्ति –अभिधा और लक्षणा।
अलंकार –अनुप्रास अलंकार
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