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टिण्डल प्रभाव (Tyndall Effect) की परिभाषा, उदाहरण और कारण | Tyndall Effect in Hindi

टिण्डल प्रभाव (Tyndall Effect) क्या है?

टिण्डल प्रभाव की परिभाषा:
टिण्डल ने सन् 1869 में पाया कि यदि प्रकाश के प्रबल पुँज को अन्धेरे स्थान में रखे कोलॉइडी सॉल से गुजारा जाता है, तो उस पुंज का पथ प्रकाशित होने लगता है। यह परिघटना टिण्डल प्रभाव कहलाती है। यह प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है। इस प्रभाव से बना प्रकाश पथ टिण्डल शंकु (Tyndall Cone) कहलाता है।





टिण्डल प्रभाव के उदाहरण:

  1. पुच्छल तारे की पूँछ टिण्डल शंकु के रूप में दिखायी देती है।
  2. आकाश का नीला रंग प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
  3. समुद्र के जल का नीला रंग जल के अणुओं द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
  4. प्रोजेक्टर की बीम या सर्कस लाइट की दृश्यता भी टिण्डल प्रभाव से होती है।
  5. अन्धेरे कमरे में सूर्य की किरणें धूल के कणों से टकराकर दृश्य हो जाती हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • यह प्रभाव केवल कोलॉइडी विलयनों में देखा जाता है।
  • वास्तविक विलयनों में कण इतने छोटे होते हैं कि प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता, अतः टिण्डल प्रभाव नहीं दिखाई देता।

निष्कर्ष:

टिण्डल प्रभाव विज्ञान में एक महत्वपूर्ण प्रकाशीय घटना है, जो कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन को दर्शाती है। यह न सिर्फ विज्ञान प्रयोगशालाओं में, बल्कि प्राकृतिक घटनाओं में भी दिखाई देता है।


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