ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम क्या है? परिभाषा, सूत्र, सीमाएं | First Law of Thermodynamics in Hindi
परिभाषा: ऊष्मागतिकी का पहला नियम बताता है कि ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है और यह ऊर्जा संरक्षण के नियम का पालन करती है। अर्थात, ऊष्मा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, बल्कि इसे एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है।
📘 ऊष्मागतिकी का पहला नियम (First Law of Thermodynamics)
“जब किसी निकाय को ऊष्मा दी जाती है तो वह ऊष्मा, उस निकाय की आंतरिक ऊर्जा बढ़ाने और कार्य करने में उपयोग होती है।”
इस नियम को सूत्र के रूप में निम्न प्रकार से लिखा जाता है:
Q = ΔU + W
- Q = दी गई ऊष्मा (Heat Supplied)
- ΔU = आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन
- W = निकाय द्वारा किया गया कार्य
या, ΔU = Q – W
🧪 उदाहरण:
यदि किसी गैस को गर्म किया जाए तो वह फैलती है (Expansion) और कार्य करती है। इस प्रक्रिया में गैस की आंतरिक ऊर्जा और उसके द्वारा किया गया कार्य दोनों ही होते हैं, जो पहली ऊष्मा से लिए जाते हैं।
📌 ऊष्मागतिकी का यह नियम किन-किन पर लागू होता है?
- ठोस
- द्रव
- गैस
📉 सीमाएँ (Limitations):
- यह नियम यह नहीं बताता कि दी गई ऊष्मा में से कितना भाग कार्य में बदला गया।
- यह ऊष्मा के प्रवाह की दिशा की जानकारी नहीं देता है।
- यह यह नहीं बताता कि ऊष्मा को पूरी तरह से कार्य में क्यों नहीं बदला जा सकता।
📌 निष्कर्ष:
ऊष्मागतिकी का पहला नियम ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत ही है जो ऊष्मा और कार्य के बीच संबंध को दर्शाता है। यह ऊष्मा को ऊर्जा के एक रूप के रूप में मान्यता देता है।
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