सहसंयोजक बंध सिद्धांत, सिग्मा और पाई बंध, अनुनाद प्रभाव | Covalent Bond, Sigma Pi Bond & Resonance in Hindi
🔷 सहसंयोजक बंध सिद्धांत (Covalent Bond Theory)
इस सिद्धांत को हाइटलर और लंदन ने प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार, परमाणुओं के बाह्यतम कक्षा में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के अतिव्यापन (overlapping) से सहसंयोजक बंध बनता है। इस बंध में बंध के दोनों इलेक्ट्रॉनों पर दोनों परमाणुओं का समान अधिकार होता है।
मुख्य बिंदु:
- समान ऊर्जा वाले कक्षक अतिव्यापन में भाग लेते हैं।
- जितना अधिक अतिव्यापन, उतना ही मजबूत बंध।
- अतिव्यापन की दिशा ऐसी हो जिससे ओवरलैपिंग अधिकतम हो।
- जितने अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, उतने ही सहसंयोजक बंध बनते हैं।
- S-S, S-P, P-P समाक्षीय अतिव्यापन से σ बंध तथा P-P समपार्श्विक अतिव्यापन से π बंध बनते हैं।
🧪 Sigma (σ) और Pi (π) बंध में अंतर
सिग्मा (σ) बंध | पाई (π) बंध |
---|---|
S-S, S-P या P-P कक्षकों के समाक्षीय अतिव्यापन से बनता है। | केवल P-P कक्षकों के समपार्श्विक अतिव्यापन से बनता है। |
प्रबल होता है, अतिव्यापन अधिक होता है। | दुर्बल होता है, अतिव्यापन कम होता है। |
तोड़ने के लिए अधिक ऊर्जा चाहिए। | कम ऊर्जा से टूट सकता है। |
अकेला बन सकता है। | हमेशा σ बंध की उपस्थिति में बनता है। |
मुक्त घूर्णन संभव है। | मुक्त घूर्णन संभव नहीं है। |
नोडीय तल नहीं होता। | नोडीय तल पाया जाता है। |
📷 σ और π बंध आरेख
- s-s अतिव्यापन:
- s-p अतिव्यापन:
- p-p समाक्षीय अतिव्यापन (σ):
- p-p समपार्श्विक अतिव्यापन (π):
🔁 अनुनाद प्रभाव (Resonance)
जब π-बंध के इलेक्ट्रॉन या एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म एक स्थान से दूसरे स्थान पर गतिशील होते हैं, तो उस प्रक्रिया को अनुनाद प्रभाव कहा जाता है।
प्राप्त संरचनाओं को अनुनादी संरचना(<→)
से दर्शाया जाता है।उदाहरण: कार्बोनेट आयन (CO₃²⁻)

उदाहरण: नाइट्रेट आयन (NO₃⁻)

अनुनादी ऊर्जा:
अनुनाद संकर (resonance hybrid) की ऊर्जा और सबसे स्थिर अनुनादी संरचना के बीच का अंतर अनुनादी ऊर्जा
यह अणु को अधिक स्थायित्व
📌 औपचारिक आवेश (Formal Charge):
किसी परमाणु पर स्थित आवेश को औपचारिक आवेश
सूत्र:
औपचारिक आवेश = वैलेंस इलेक्ट्रॉन - अबंधी इलेक्ट्रॉन - 1/2 × बंधित इलेक्ट्रॉन
उदाहरण: ओजोन (O₃)

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