संत रैदास (रविदास) का जीवन परिचय
संत रैदास, जिन्हें गुरु रविदास के नाम से भी जाना जाता है, भक्ति आंदोलन के महान संतों में से एक थे। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) शहर में एक चमार जाति के साधारण परिवार में हुआ था। संत रैदास को समता, भक्ति और मानवता का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने सामाजिक भेदभाव और जातिवाद का विरोध करते हुए ईश्वर की एकता और प्रेम का संदेश दिया।
संत रैदास का संक्षिप्त परिचय:
| पूरा नाम | गुरु रविदास (Sant Ravidas) |
| जन्म | सन् 1388 |
| जन्मस्थान | वाराणसी (बनारस), उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | श्री संतोख दास जी |
| माता का नाम | कलसा देवी |
| पत्नी का नाम | लोना देवी |
| गुरु का नाम | पंडित शारदा नन्द |
| मृत्यु | सन् 1540, वाराणसी |
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रैदास जी बचपन से ही भगवत भक्ति और विवेकशीलता से परिपूर्ण थे। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पंडित शारदा नंद की पाठशाला से प्राप्त की। जब उच्च जाति के विद्यार्थियों ने उनके साथ पढ़ने पर आपत्ति की, तो उनके गुरु ने उन्हें अलग से शिक्षा देना शुरू किया। रविदास जी पढ़ने में इतने कुशाग्र थे कि एक बार में ही पाठ समझ लेते थे।
संत रविदास का योगदान
- समाज में जातिवाद और छुआछूत का खुला विरोध किया।
- ईश्वर की भक्ति को जीवन का प्रमुख उद्देश्य बताया।
- समता, सेवा और सत्य की शिक्षा दी।
- उन्होंने संत कबीर के साथ समय बिताया और उनके समकालीन थे।
- सिख धर्म की पवित्र पुस्तक "गुरु ग्रंथ साहिब" में भी उनकी रचनाएँ सम्मिलित हैं।
रैदास की प्रमुख शिक्षाएं:
"मन चंगा तो कठौती में गंगा" – यदि मन शुद्ध है, तो हर स्थान तीर्थ समान है।
"ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।"
संत रैदास की स्थायी विरासत
रैदास जी की शिक्षाएं आज भी रविदास समाज और करोड़ों भक्तों के जीवन में प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि ईश्वर का सच्चा मार्ग प्रेम, सेवा और समर्पण
निष्कर्ष
संत रविदास न केवल एक भक्त कवि थे, बल्कि समाज-सुधारक की नींव रखी। आज भी उनकी वाणी जनमानस को जाग्रत और प्रेरित
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