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सन्धि की परिभाषा क्या है ? सन्धि किसे कहते है ? , भेद या प्रकार , उदाहरण , प्रश्न उत्तर

सन्धि की परिभाषा क्या है ? सन्धि किसे कहते है ?  , भेद या प्रकार , उदाहरण , प्रश्न उत्तर:-

सन्धि :-

दो निर्दिष्ट वर्गों के पास-पास आने के कारण उनके मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं । सन्धि में जब दो वर्ण अथवा अक्षर मिलते हैं तो उनकी मिलावट से विकार पैदा होता है । अक्षरों की यह विकारजनित मिलावट ही ‘सन्धि’ कहलाती है। इस विकारजन्य मिलावट को समझकर वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना ही ‘सन्धिविच्छेद’ कहलाता है।


सन्धि तीन प्रकार की होती है-

(1) स्वर (अच्) सन्धि

(2) व्यंजन (हल) सन्धि

(3) विसर्ग सन्धि


(1) स्वर सन्धि (अच् सन्धि):-

स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं अर्थात् दो स्वरों के पास आने से जो सन्धि होती है उसे स्वर सन्धि कहते हैं।

 जैसे-

राम + अवतार = (राम् + अ + अ + वतार) = रामावतार ।


स्वर सन्धि के 5 प्रभेद होते हैं-

(क) दीर्घ स्वर सन्धि,  (ख) गुण स्वर सन्धि,


(ग) वृद्धि स्वर सन्धि,  (घ) यण स्वर सन्धि,


(ङ) अयादि स्वर सन्धि ।


(क) दीर्घ स्वर सन्धि- आ, ई, ऊ, ऋ।

यदि दो सवर्ण स्वर पास-पास आवें दोनों मिलकर सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाते हैं । जैसे-


अ + अ   = आ


शश + अंक = शशांक


कल्प + अंत = कल्पांत


अन्न + अभाव = अन्नाभाव


परम + अर्थ  = परमार्थ


अ + आ  = आ


रत्न + आकर = रत्नाकर,   सिंह + आसन  = सिंहासन


कुश ़ आसन  = कुशासन,   पंच + आनन = पंचानन


शिव ़ आलय = शिवालय,   भोजन + आलय = भोजनालय


आ + अ  = आ


विद्या + अर्थी  = विद्यार्थी,   लता + अन्त = लतान्त


विद्या + अलंकार = विद्यालंकार,   महा + अर्णव = महार्णव


रेखा + अंश  = रेखांश,   विद्या + अभ्यास  = विद्याभ्यास


आ + आ  = आ


विद्या + आलय = विद्यालय,  शिला + आसन  = शिलासन


महा + आशय = महाशय,   महा + आदर  = महादर


वार्ता + आलाप  = वार्तालाप


इ + इ   = ई


गिरि + इन्द्र  = गिरीन्द्र   अभि + इष्ट = अभीष्ट


मुनी + इन्द्र = मुनीन्द्र,   प्रति + इति  = प्रतीति


इ + ई   = ई


गिरि + ईश  = गिरीश,   कपि + ईश्वर  = कवीश्वर


कपि + ईश = कपीश,   कपि + ईश्वर  = कवीश्वर


क्षिति + ईश = क्षितीश


ई + इ   = ई


नदी + इन्द्र = नदीन्द्र   महती + इच्छा = महतीच्छा


मही + इन्द्र  = महीन्द्र,   गौरी + इच्छा = गौरीच्छा


देवी + इच्छा = देवीच्छा


ई + ई   = ई


मही + ईश्वर = महीश्वर,  सती + ईश = सतीश


पृथ्वी + ईश्वर  = पृथ्वीश्वर,   रजनी + ईश = रजनीश


पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश,


उ + उ   = ऊ


विधु + उदय = विधूवध,   लघु + उत्पात = लघूउत्पात


भानु + उदय  = भानूउदय


ऊ + उ   = ऊ


वधू + ऊहन = वधूहन,   भू + उन्नति  = भून्नति


भू + ऊद्ध्र्व  = भूद्ध्र्व,   भू + उद्धार  = भूद्धार


उ + ऊ   = ऊ


लघु + ऊर्मि = लघूर्मि,   गुरू + ऊहा = गुरूहा


सिंधु + ऊर्मि  = सिंधूर्मि


ऊ + ऊ   = ऊ


वधू  + ऊहर्न = वधूहनर्,,   स्वयम्भू + ऊह = स्वयंम्भूह


भू + ऊद्ध्र्व  = भूद्ध्र्व,   भू + ऊर्जित  = भूर्जित


ऋ + ऋ  = ऋ


मातृ + ऋण = मातृण,


पितृ + ऋण  = पितृण,


(2) गुणस्वर सन्धि – ए, ओ, अर्, अल्

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ‘ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘इ’ या ‘ई’ के स्थान पर ‘ए’, ‘उ’ या ‘ऊ’ के स्थान पर ‘ओ’ और ‘ऋ’ के स्थान पर ‘अर’ हो जाते हैं । जैसे-्


अ + इ   = ए


देव + इन्द्र = देवेन्द्र,   गज + इन्द्र  = गजेन्द्र


अ + ई   = ए


गण + ईश  = गणेश,    सुर + ईश  = सुरेश,


देव + ईश = देवेश,   नर + ईश  = नरेश


सुर + ईश = सुरेश,   ब्रज + ईश = ब्रजेश


आ + इ    = ए


रमा + इन्द्र  = रमेन्द्र,   महा + इन्द्र = महेन्द्र


आ + ई   = ए


रमा + ईश्वर  = रमेश्वर,   महा + ईश = महेश


रमा + ईश  = रमेश


अ + उ   = ओ


सूर्य + उदय  = सूर्योदय,   हित + उपदेश  = हितोपदेश


चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय ।


आ + उ  = ओ


महा + उत्सव  = महोत्सव,   महा + उदय = महोदय


अ + ऊ   = ओ


समुद्र + ऊमि  = समुद्रोमि,  एक + ऊनविंशति  = एकोनविंशति


आ + ऊ  = ओ


महा + ऊर्मि  = महोर्मि,   रम्भा + ऊरु  = रम्भोरु


महा + ऊरु  = महोरु,    गंगा + ऊर्मि  = गंगोमि


अ + ऋ  = अर्


देव + ऋषि  = देवर्षि,   सप्त + ऋषि  = सप्तर्षि


आ + ऋ  = अर्


महा + ऋषि  = महर्षि,   राजा + ऋषि  = राजर्षि


 


अपवाद – स्व + ईर = स्वैर, अक्ष + ऊहिणी = अक्षौहिणी, प्र + ऊढ+ = प्रौढ+, सुख + ऋत = सुखार्त, दश + ऋण = दशार्ण आदि ।


(3) वृद्धि स्वर सन्धि -ऐ, औ

यदि ‘अ‘ या श्आश् के बाद ‘ए‘ आए तो दोनों के स्थान पर ‘ऐ‘ और ‘ओ‘ या ‘औ‘ आए तो दोनों के स्थान में ‘औ‘ हो जाते हैं। जैसे-


अ + ए   = ऐ


एक + एक  = एकैक,    हित + एषी  = हितैषी


आ + ए   = ऐ


सदा + एव  = सदैव,    तथा + एव  = तथैव


अ + ऐ   = ऐ


मत + ऐक्य  = मतैक्य,    मम + ऐश्वर्य  = ममैश्वर्य


नव + ऐश्वर्य  = नवैश्वर्य


आ + ऐ   = ऐ


महा + ऐश्वर्य  = महैश्वर्य


राजा + ऐश्वर्य  = राजैश्वर्य


आ + ओ  = औ


जल + ओका  = जलौका,   मांस + ओदन  = मांसोदन


परम + ओजस्वी = परमौजस्वी   जल + औघ  = जलौघ


अ + औ  = औ


परम + औषध = परमौषध,   उत्तम + औषय = उत्तमौषध


आ + ओ  = औ


महा + ओज = महीज,    महा + ओजस्वी  = महौजस्वी


आ + औ  = औ


महा + औदार्य  = महौदार्य,   महा + औषध  = महौषध


अपवाद-अ या आ के आगे ओष्ठ शब्द आवे तो विकल्प से ओ अथवा औ होता है, जैसे-बिंब + ओष्ठ = बिंबोष्ठ वा बिंबोष्ठ, अपर + ओष्ठ = अपरोष्ठ या अपरौष्ठ ।


(4) यण स्वर सन्धि -य, र, ल, व


यदि ‘इ‘, ‘ई‘, ‘उ‘, ‘ऊ‘, ‘ऋ‘, के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ‘इ-ई‘ का ‘य्’, ‘उ-ऊ’ का य् और ‘ऋ’ का ‘र्‘ हो जाता है। जैसे-


इ, ई + अन्य भिन्न स्वर = य् ।


यदि + अपि  = यद्यपि,  अति + अन्त  = अत्यन्त


इति + आदि = इत्यादि,  अति + आचार = अत्याचार


प्रति + उत्तर  = प्रत्युत्तर, प्रति + एक = प्रत्येक


अति + आवश्यक  = अत्यावश्यक, अति + उत्तम = अत्युत्तम


अति + ऊष्म = अत्यूष्प,  नदी + अम्बु = नधम्बु


देवी + आगता  = देव्यागता, नि + ऊन  = न्यून


उ ऊ + अन्य भिन्न स्वर = व्


मनु + अन्तर  = मन्वतर,  सु + आगत = स्वागत


अनु + अय  = अन्वय,  अनु + एषण = अन्वेषण


पशु + आदि  = पश्वादि,  सु + अल्प  = स्वल्प


अनु + इति  = अन्विति,  अनु + आगत = अन्वागत


मधु + आलय  = मध्यालय, गुरु + ओवन  = गुर्वोदन


गुरु + औदार्य  = गुल्दार्य,  अनु + इत  = अन्वित


ऋ + अन्य भिन्न स्वर = र


पितृ + आदेश  = पित्रादेश, पितृ + अनुमति  = पित्रनुमति


पितृ + आलय  = पित्रालय, मातृ + आनन्द  = मात्रानन्द


मातृ + उपदेश  = मात्रयुपदेश ।


(5) अयादि स्वर सन्धि – अय्ा्, आय, अव्, आद्

यदि ‘ए‘, ‘ऐ‘, ‘ओ‘, ‘औ‘ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ‘ए‘ का ‘अय‘, ‘ऐ‘ का ‘आय‘, ‘ओ‘ का ‘अव् और ‘औ‘ का ‘आव्‘ हो जाता है। उदाहरण-


ए-अय्


ने + अन = नयन,  शे + अन = शयन


चे + अन = चयन


ऐ-आय्


गै + अक = गायक,  गै + अन = गायन


नै + अक = नायक


ओ-अ


पो + अन = पवन,  भो + अन = भवन


पो + इत्र = पवित्र,  श्रो + अन = श्रवण


गो + ईश = गवीश


औ-आव्


पौ + अन = पावन,  भौ + अन = भावन


भौ + उक = भावुक, पौ + अक = पावक


श्री + अन = श्रावण,  नौ + इक = नाविक


व्यंजन सन्धि:-

व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन अथवा स्वर के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन सन्धि कहते हैं। जैसे- जगत् + ईश = जगदीश, जगत् + नाथ = जगन्नाथ ।


(1) यदि ‘क्‘, ‘च्‘, ‘ट्‘, ‘त्‘, ‘पू‘, के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए या, य, र, ल, व या कोई स्वर आए तो क् च्, ह्, त्, प् के स्थान में अपने ही वर्ण का तीसरा वर्ण हो जाता है। उदाहरण-


दिक् + गज = दिग्गज,  दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम


वाक् + जाल = वाग्जाल,  अच् + अन्त = अजन्त


षट् + दर्शन = षड्दर्शन,  सत् + वाणी = सद्वाणी


तत् + रूप = तद्रूप,   अप् + इन्धन = अबिन्धन


जगत् + आनन्द = जगदानन्द,  वाक् + ईश = वागीश


षट् + आनन = षडानन,  अप् + ज = अब्ज।


(2) यदि ‘क्‘, ‘च्‘, ‘ट्‘, ‘त्‘, ‘पू‘, के बाद म या न आये तो ‘क्‘, ‘च्‘, ‘ट्‘, ‘त्‘, ‘पू‘, अपने वर्ग के पंचम .


वर्ण में बदल जाते हैं। उदाहरण-


वाक् + मय = वाङ्मय,  षट् + मास = षण्मास


षट् + मार्ग = षण्मार्ग,  उत् + नति = उन्नति


जगत् + नाथ = जगन्नाथ,  अप् + मय = अम्मय.


(3) यदि ‘म्‘ के बाद कोई स्पर्श व्यंजन वर्ण आए तो मका अनुस्वार या बाद वाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है । जैसे-


किम् + चित् = किंचित, किञ्चिद्


पम् + चम = पंचम, पञ्चम


अहम् + कार = अहंकार, अहङ्कार


सम् + गम = संगम, सङ्गम


(4) त् वा द् के आगे च वा छ हो तो त् वा द् के स्थान में च् होता है, ज वा झ हो तो ज् ट् वा ठ हो तो ट्, ड, वा ढ हो तो  ड्, और ल हो तो ल् होता है। जैसे- शरत् + चंद्र = शरच्चद्रय, उत् + चारण = उच्चारणय, सत् + जन सज्जनय, महत्् + छत्र = महच्छत्र, विपद् + जाल = विपज्जालय तत् + लीन = तल्लीन ।


(5) त् वा द् के आगे श हो तो त् वा द् के बदले च् और श के बदले छ होता है, और त् वा द् के आगे ह हो तो त् वा द् के स्थान में इ और ह के स्थान में घ होता है। जैसे-…


सत् + शास्त्र – सच्छास्त्रय,  उत् + हार – उद्धार ।


(6) छ के पूर्व स्वर हो तो छ के बदले का होता है। जैसे-


आ + छादन = आछादन,  परि + छेद – परिच्छेद ।


(7) म् के आगे स्पर्श वर्ण हो तो म् के बदले विकल्प से अनुस्वार अथवा उसी वर्ग का अनुनासिक वर्ण आता है। जैसे-


सम् + कल्प = संकल्प वा सङ्कल्प,


किम् + चित् = किंचित या किञ्चित,


सम् + तोष = संतोष वा सन्तोष,


सम् + पूर्ण = संपूर्ण वा सम्पूर्ण ।


(8) म् के आगे अंतस्थ वा ऊष्म वर्ण हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है । जैसे-


किम् + वा = किंवा,  सम् + योग = संयोग,


सम् + हार = संहार,  सम् + वाद= संवाद।


इस नियम का अपवाद भी मिलता है,-जैसे- सम् + राज् = सम्राज् (टू) ।


(9) ऋ, र, वाष के आगे न हो और इनके बीच में वाहे स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार य, व, ह आवे तो न का ण हो जाता है । जैसे-्


भर् + अन = भरण,


भूष् + अन = भूषण,  राम + अयन = रामायण


प्र + मान = प्रमाण,  तृष् + ना: तृष्णा


ऋ + न = ऋण,


(10) यदि किसी शब्द के आब स से पूर्व अ, आ को छोड़ कोई स्वर आवे तो स के स्थान पर ष होता है। जैसे-


अभि + सेक = अभिषेक,


नि + सिद्ध = निषिद्ध,  वि + सम = विषम


सु + सुप्ति = सुषुप्ति ।


यहाँ द्रष्टव्य है कि जिस संस्कृत धातु में पहले न और उसके पश्चात् ऋ या र उससे बने हुए शब्द का स पूर्वोक्त वर्णों के पीछे आने पर व नहीं होता, जैसे-


वि + स्मरण (स्म्-धातु) = विस्मरण


अनु + सरण (सू – धातु) = अनुसरण


वि + सर्ग (सृज्-धातु) = विसर्ग


(11) यौगिक शब्दों में यदि प्रथम शब्द के अन्त में न हो तो उसका लोप होता है, जैसे-


राजन् + आज्ञा = राजाज्ञा


हस्तिन् + दंत = हस्तिदंत


प्राणिन् + मात्र = प्राणिमात्र


धनिन् + त्व = धनित्व ।


यहाँ द्रष्टव्य है कि अहन शब्द के आगे कोई भी वर्ण आवे तो अन्त्य न के बदले र होता है, पर रात्रि, रूप शब्द पर रात्रि, रूप शब्दों के आने से न का उ होता है, और संधि के नियमानुसार अ + उ मिलाकर ओ हो जाता है, जैसे-


अहन् + गण = अहर्गण,  अहन् + मुख = अहर्मुख


अहन् + रात्र = अहोरात्र,  अहन् + रूप = अहोरूप


विसर्ग सन्धि:-


विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार है उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं । जैसे तपः + वन = तपोवन, निः + अंतर = निरंतर ।


(1) यदि विसर्ग के आगे च वा छ हो तो विसर्ग का श् हो जाता है, ट वा ठ हो तो ष्, और त वा थ हो तो स होता है। जैसे-


निः + चल = निश्चल,  निः + छिद्र = निश्छिद्र


धनुः + टंकार = धनुष्टंकार,


ततः + ठकार = ततष्ठकार,  मनः + ताप = मनस्ताप


निः + तार = निस्तार,  दुः + थल = दुस्थल


(2) विसर्ग के पश्चात् श, ष वा स आवे तो विसर्ग जैसा का तैसा रहता है अथवा उसके स्थान में आगे का वर्ण हो जाता है । जैसे-


दुः + शासन = दुःशासन, दुश्शासन


निः + सन्देह = निःसन्देह, निस्सन्देह


(3) विसर्ग के आगे, क, ख, वा प, फ आवे तो विसर्ग का कोई विकार नहीं होता, जैसे-


रजः + कण = रजःकण,  पयः + पान = पयःपान


(4) यदि विसर्ग के पूर्व इ या उ हो तो क, ख, या प, फ के पहले विसर्ग के बदले ष् होता है, जैसे-


निः + कपट = निष्कपट  दुः + कर्म = दुष्कर्म


निः + फल = निष्फल,  दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति


दुः + कर = दुष्कर,  निः + कारण = निष्कारण ।


अपवाद- दुरू + ख = दुःख,  निः + पक्ष = निःपक्ष, निष्पक्ष ।


(5) कुछ शब्दों में विसर्ग के बदले म आता है, जैसे


नमः + कार = नमस्कार,  पुरः + कार = पुरस्कार


भाः + कर = भास्कर,  भाः + पति = भास्पति।


(6) यदि विसर्ग के पूर्व अ हो और आगे घोष व्यंजन हो तो अ और विसर्ग (अः) के बदले ओ हो जाता है । जैसे-


अधः + गति = अधोगति,  मनः + योग = मनोयोग


तेजः + राशि = तेजोराशि,  वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध।


(7) यदि विसर्ग के पूर्व अ हो और आगे भी अहो तो आ के पश्चात् दूसरे अ का लोप हो जाता है और उसके बदले लुप्त अकार का चिन्ह ‘ऽ’ कर देते हैं। जैसे-


प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय


मनः + अनुसार = मनोऽनुसार।


(8) यदि विसर्ग के पहले अ, आ को छोड़कर और कोई स्वर हो और आगे कोई घोष वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान में र् होता है, जैसे-


निः + आशा = निराशा,  दुरू + उपयोग = दुरुपयोग,


निः + गुण = निर्गुण,  बहिः + मुख = बहिर्मुख।


(9) यदि र् के आगे र हो तो र् का लोप हो जाता है और उसके पूर्व का इस्व स्वर दीर्घ कर दिया जाता है, जैसे-


निर् + रस = नीरस,  निर + रोग = नीरोग


पुनर् + रचना = पुनारचना (हिन्दी-पुनर्रचना)


कुछ प्रमुख शब्दों के सन्धिविच्छेद


अन्तःकरण = अन्तर + करण


अन्याय = अ + नि + आय,   अभ्युदय = अभि + उदय


अन्वय = अनु + अय,    अन्तःपुर = अन्तर् + पुर


अत्यधिक = अति + अधिक,    अधीश्वर = अधि + ईश्वर


अन्योन्याश्रय = अन्य + अन्य + आश्रय


अभीष्ट = अभि + इष्ट,    अत्याचार = अति + आचार


अन्यान्य = अन्य + अन्य,    अरण्याच्छादित = अरण्य + आच्छादित


अधोगति = अधः + गति,    अतएव = अतः + एवं


अत्यन्त = अति + अन्त,    अन्तर्निहित = अन्तः + निहिर


अहर्निश = अहः = निश,    अन्वेषण = अनु + एषण


अब्ज = अप् + ज,     अजन्त = अच् + अन्त


अम्मय = अप् + मय,    अभ्यागत = अभि + आगत


अत्मोत्सर्ग = आत्म + उत्सर्ग,   अनाभाव = अत्र + अभाव


अम्बूमि = अम्बु + ऊर्मि,   अत्युत्तम = अति + उत्तम


अत्यावश्यक = अति + आवश्यक,  अहंकार = अहम् + कार


अन्वित = अनु + इत,   आशीर्वाद = आशीः + वाद


आकृष्ट = आकृष् + त,   आविष्कार = आविः + कार


आच्छादन = आ + छादन   आधन्त = आदि + अन्त


अन्ताराष्ट्रीय (हिन्दी में – अन्तर्राष्ट्रीय) = अन्तर + राष्ट्रीय


अन्तर्यामी = अन्तः + याम,   अन्तरात्मा = अन्तः + आत्मा


अहरहः = अहः + अहः,   अधोमुख = अधः + मुख


अब्द = अप् + द


इत्यादि = इति + आदि,


ईश्वरेच्छा = ईश्वर + इच्छा,


उच्छिष्ट = उत् + शिष्ट,   उच्छृङ्खलता = उत् + श्रृंखल


उच्छ्वास = उत् + श्वास,   उल्लास = उत् + लास


उद्धार = उत् + हार,   उन्नायक = उत् + नायक


उन्नति = उत् + नति,   उद्धत = उत् + हत


उद्धृत = उत् + हृत,    उन्मूलित = उत् + मूलित


उद्विग्न = उत् + विग्न,   उद्गम = उत् + गम


उल्लंघन = उत् + लंघन,   उपेक्षा = उप + ईक्षा


उद्घाटन = उत् + घाटन,   उत्तम = उत् + तम


उच्चारण = उत् + चारण,   उच्छिन्न = उत् + छिन्न


उन्मीलित = उत् + मीलित,   उदय = उत् + अय


उन्मत्त = उत् + मत्त,   उपर्युक्त = उपरि + उक्त


उज्ज्वल = उत् + ज्वल,   उड्डयन = उत् + डयन


उच्छिष्ट = उत् + शिष्ट,   उल्लेख = उत् + लेख


उन्नयन = उत् + नयन,   उन्माद = उत् + माद


उद्योग = उत् + योग,   एकैक = एक + एक


उद्भव = उत् + भव,   उद्धव = उत् + हव


कृदन्त = कृत् + अन्त,   कुलटा = कुल + अटा


कल्पान्त = कल्प + अन्त,   कपीश = कपि + ईश


किन्नर = किम् + नर,   कवीश्वर = कवि + ईश्वर


तथैव = तथा + एव,    तदाकार = तत् + आकार


तल्लीन = तत् + लीन,   तथापि = तथा + अपि


तद्धित = तत् + हित,   तद्रूप = तत् + रूप


तेजोपुंज = तेजः + पुंज,   तपोभूमि = तपः + भूमि


तृष्णा = तृष् + ना,    तेजोमय = तेजः + मय


तेजोराशि = तेजः + राशि,   तट्टीका = तत् + टीका


तपोवन = तपः + वन,    तिरस्कार = तिरः + कार


देवेन्द्र = देव + इन्द्र,    दुश्शासन = दुः + शासन


दुर्नीति = दुरू + नीति,    देवेश = देव + ईश


दिग्गज = दिक् + गज्,    दुर्ग = दुरू + ग


दिग्भ्रम = दिक् + भ्रम,    दिगम्बर = दिक् + अम्बर


दावानाल – दाद + अनल,    दुरस्थल = दुरू + स्थल


दुस्तर = दुरू + तर,    दुर्धर्ष = दुरू + वष


दुर्वह = दुरू + वह,    दुर्दिन = दुरू + दिन


देव्यागम = देवी + आगम,    देवर्षि – देव + ऋषि


दुर्जन = दुरू + जन,    दुष्कर = दुरू + कर


नमस्कार = नमः + कार,    नारायण – नार + अयन


नद्यम्बु = नदी + अम्बु,    नदीश = नदी + ईश


नारीश्वर = नारी + ईश्वर,    न्यून = नि + ऊन


नधूमि = नदी + ऊर्मि,    नयन = ने + अन


नाविक = नौ + इक,    नायक = नै + अक


निश्चल = निः + चल,    निश्छल = निः + छल


निस्सृत = निः + सृत,    निस्सन्देह = निः + सन्देह


निराधार = निः + आधार,    निस्सार = निः + सार,


निरीक्षण = निः + ईक्षण,    निष्काम = निः + काम


निरीह = निः + ईह,    निषिद्ध = निः + सिद्ध


निष्पाप = निः + पाप,    निषिद्ध = निसिथ् + त


निर्विवाद = निः + विवाद,    निस्सहाय = निः + सहाय


निश्चिन्त = निः + चिन्त,    निरर्थक = निः + अर्थक


निर्झर = निः + झर,    निरन्तर = निः + अन्तर


निश्चय = निः + चय,    निर्मल = निः + मल


निष्प्राण = निः + प्राण,    निर्भर = निः + भर


निश्शब्द = निः + शब्द,    निरुद्देश्य = निः + उद्देश्य


निर्जल = निः + जल,    निरुपाय = निः + उपाय


निष्कारण = निः + कारण,    निष्फल = निः + फल


निस्तार = निः + तार,    निर्विकार = निः + विकार


निर्गुण = निः + गुण,    निष्कपट = निः + कपट


नीरव = निः + रव,     निरोग = निः + रोग


परमौषध – परम + औषध,    परमार्थ = परम + अर्थ


परमेश्वर = परम + ईश्वर,    परमौजस्वी = परम + ओजस्वी


पावन = पी + अन,     पावक = पी + अक


पित्रादेश = पितृ + आदेश,   पंचम = पम् + चम


पुरुषोत्तम = पुरुष + उत्तम,    प्रत्येक = प्रति  + एक


प्रत्युत्तर = प्रति + उत्तर,   प्राङ्मुख = प्राक् + मुख


पित्रनुमति = पितृ + अनुमति,    पितृच्छा = पितृ + इच्छा


पवन = पो + अन,     पुनर्जन्म = पुनः + जन्म


पवित्र = पो + इत्र,     पुरस्कार = पुरः + कार


प्रत्यय = प्रति + अय,    प्रत्यक्ष = प्रति + अक्ष


परिच्छेद = परि + छेद,    प्रांगण = प्र + अंगण


परीक्षा = परि + ईक्षा,    पुनरुक्ति = पुनः + उक्ति


पदोन्नति = पद + उन्नति,   पीताम्बर = पीत + अम्बर


पश्वधम = पशु + अधम,    पृष्ठ = पृष् + ध


प्रोत्साहन = प्र + उत्साहन,    प्रतिच्छाया = प्रति + छाया


परन्तु = परम + तु,    पयोधि = पयः + घि


प्रातःकाल = प्रात + काल,    परिष्कार = परिः + कार


पयोद = पयः + द,


पयःपान = पय + पान,    प्रथमोऽध्याय = प्रथम + अध्याय


परमार्थी = परम + अर्थी,    पृथ्वीश = पृथ्वी + ईश


भवन = भो + अन,     भानूदयः = भानु + उदय


भाग्योदय = भाग्य + उदय,    भावुक = भौ + उक


मनोहर = मन + हर,    महौषध = महा + औषध


मनोगत = मनः + गत,    महाशय = महा + आशय


महौज = महा + ओज,    मतैक्य = मत + ऐक्य


मातृण = मातृ + ऋण,    मृण्मय = मृत् + मय


महोर्मि = महा + ऊर्मि,    महीन्द्र = मही + इन्द्र


मुनीन्द्र = मुनि + इन्द्र,


महाशय = महा + आशय,    महेश्वर = महा + ईश्वर


मन्वन्तर = मनु + अन्तर,    महोत्सव = महा + उत्सव


महार्णव = महा + अर्णव,    मृगेन्द्र = मृग + इन्द्र


महर्षि = महा + ऋषि,    मनोयोग = मनः + योग


मनोज = मनः + ज,    महेश = महा + ईश


महेन्द्र = महा + इन्द्र,    मनोरथ = मनः + रथ


मनोभाव = मनः + भाव,    मनोविकार = मनः + विकार


मनोनुकूल = मनः + अनुकूल ।


यशोदा = यशः + दा,    यशोधरा = यशः + घरा


यथोचित = यथा + उचित,    यद्यपि = यदि + अपि


यशेच्छा = यशः + इच्छा,    यशोऽभिलाषी = यशः + अभिलाषी


यथेष्ट = यथा + इष्ट,   युधिष्ठिर = युधि + स्थिर


रमेश = रमा + ईश,    रामायण = राम + अयन


रत्नाकर = रल + आकर,    राजर्षि = राज + ऋषि


लोकोक्ति = लोक + उक्ति,    वध्वैश्वर्य = वधू + ऐश्वर्य


विपज्जाल = विपद् + जाल,    बहिष्कार = बहिः + कार


वाङ्मय = वाक् + मय,    व्यायाम = वि + आयाम


व्यर्थ = वि + अर्थ,     व्युत्पत्ति = वि + उत्पत्ति


वीरांगना = वीर + अंगना,    वागीश = वाक् + ईश


वयोवृद्ध = वयः + वृद्ध,    व्याप्त = वि + आप्त


विद्योन्नति = विद्या + उन्नति,    व्याकुल = वि + आकुल


वाग्जाल = वाक ्+ जाल,   वसुधैव = वसुधा + एव


स्वार्थ = स्व + अर्थ,    स्वागत = सु + आगत


सदानन्द = सत् + आनन्द,   सुरेन्द्र = सुर + इन्द्र


शंकर = शम्+ कर,     शिरोमणि = शिरः + मणि


सद्गुरु = सत् + गुरु,    सद्भावना = सत् + भावना


सद्धर्म = सत् + धर्म,    सज्जन = सत् + जन


सच्छास्त्र = सत् + शास्त्र,    संकल्प = सम् + कल्प


संयोग = सम्+ योग,    सन्तोष = सम् + तोष


संवाद = सम् + वाद,    संचय = सम ्+ चय


सदाचार = सत् + आचार,    संसार = सम् + सार


संवत् = सम् + वत,    संभव = सम् + भव


सप्तर्षि = सप्त + ऋषि,    सीमान्त = सीमा+ अन्त


स्वाधीन = स्व + अधीन,    संयम = सम् + यम


साष्टांग = स + अष्ट+ अंग,    सतीश = सती + ईश


सत्याग्रह = सत्य + आग्रह,    समन्वय = सम् + अनु+ अय


सावधान – स + अवधान,    साश्चर्य = स + आश्चय


सन्निहित = सम् + निहित,    सर्वोत्तम = सर्व + उत्तम


सद्विचार = सत् + विचार,    संगठन = सम् + गठन


सदैव = सदा + एव,    सच्चरित्र = सत् + चरित्र


समुच्चय = सम् + उत् + चय,   सद्भाव = सत् + भाव


समुदाय = सम् + उत् + आय,   सन्धि = सम् + घि


सर्वोदय = सर्व + उदय,    सरोज = सरः + ज


सूर्योदय = सूर्य + उदय,    सरोवर = सरः + वर


सरय्वम्बु = सरयू + अम्बु,    सवाणी = सत् + वाणी


स्वयम्भूदय = स्वयम्भू + उदय,   समुद्रोमि = समुद्र + ऊर्मि


स्वर्ग = स्वः + ग,     शस्त्रास्त्र = शस्त्र + अस्त्र


शुद्धोदन = शुद्ध + ओदन,    शशांक = शश + अंक


षड्दर्शन = षट् + दर्शन,   श्रेयस्कर = श्रेयः + कर ।


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