रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay) :-
रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म सन् 1908 में बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया घाट नामक ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। कविता लिखने का शौक इन्हें विद्यार्थी जीवन से ही था। हाईस्कूल पास करने के बाद ही इन्होंने 'प्राण भंग' नामक काव्य पुस्तक लिखी जो सन् 1929 में प्रकाशित हुई। सन् 1932 में बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण करके इन्होंने एक उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधान अध्यापक के पद पर कार्य किया।
इसके बाद अवर निबन्धक के पद पर सरकारी नौकरी में चले गये। बाद में प्रचार विभाग के निदेशक के पद पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तक कार्य करते रहे। इसके बाद इन्होंने बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कुछ समय तक कार्य किया। तत्पश्चात् भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। अन्त में भारत सरकार के गृह विभाग में हिन्दी सलाहकार के रूप में एक लम्बे अरसे तक हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत रहे।
इनको ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सन् 1959 में भारत सरकार ने इन्हें 'पद्म भूषण' की उपाधि से अलंकृत किया और सन् 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय ने आपको डी. लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। इस प्रकार हिन्दी की अनवरत सेवा करते हुए सन् 1974 में हिन्दी साहित्याकाश का यह 'दिनकर' सदा-सदा के लिए अस्त हो गया।
रामधारी सिंह दिनकर जी के पिता का नाम बाबू रवि सिंह माता का नाम मनरूप देवी भाई के नाम केदारनाथ सिंह, रामसेवक सिंह पत्नी का नाम श्यामावती देवी संतान एक पुत्र (नाम ज्ञात नही)
रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय:-
दिनकर जी आधुनिक युग के एक ऐसे उदीयमान साहित्यकार हैं जिन्होंने बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हिन्दी-साहित्य की अनवरत सेवा की है। यह कवि और कुशल गद्यकार के रूप में साहित्य जगत में जाने जाते हैं। इन्होंने गद्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति, दर्शन और कला का गम्भीर विवेचन प्रस्तुत किया है। साथ ही हिन्दी के प्रचार के लिए स्तुत्य कार्य किया है। इस प्रकार 'दिनकर' जी ने हिन्दी की महान् सेवा की है। अत : आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रणेताओं में 'दिनकर' जी का स्थान दिनकर के सदृश सर्वोच्च है।
रामधारी सिंह दिनकर की कृतियाँ :-
दिनकर जी बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। इनकी प्रसिद्धि का मूल आधार कविता है। लेकिन गद्य लेखन में भी आप पीछे नहीं रहे और अनेक अनमोल गद्य ग्रन्थ लिखकर हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धिव की है इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
गद्य ग्रन्थ --- अर्द्धनारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल बट पीपल, उजली आग, भारतीय संस्कृति के चार अध्याय, हमारी सांस्कृतिक एकता।
काव्य ग्रन्थ --- प्रण भंग, रेणुका, रसवन्ती, सामधेनी, बापू, हुँकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतिज्ञा, आदी।
महाकाव्य --- कुरुक्षेत्र, उर्वशी।
बाल निबन्ध --- मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह, चित्तौड़ का सांका।
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