वाष्पोत्सर्जन (Transpiration):-
पादपों द्वारा मृदा से अवशोषित जल का अधिकांश भाग पत्तियों तथा तनों द्वारा वाष्प के रूप में निकल जाता है तथा इस अवशोषित जल का मात्र थोड़ा सा भाग (5%) ही पादपों द्वारा उनके विकास एवं उपापचयी क्रियाओं (Metabolic activities) में प्रयुक्त होता है। जल के इस अधिकांश भाग का वाष्प के रूप में उत्सर्जन वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।
इस प्रक्रिया को हम निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं
"पादपों के वायवीय भागों के जीवित ऊतकों द्वारा अवशोषित जल का जलवाष्प के रूप में ह्रास (उत्सर्जन) वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहलाता है।"
वाष्पोत्सर्जन के प्रकार (Types of Transpiration)-
उत्सर्जन करने वाले भाग अथवा स्थान के आधार पर वाष्पोत्सर्जन की क्रिया सामान्यतया तीन प्रकार से होती है:—
1. रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Stomatal Transpiration):-
वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया, जोकि मुख्यतया पत्तियों पर पाए जाने वाले रन्धों (Stomata) द्वारा होती है, रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन कहलाती है। रन्ध्रों से लगभग 90% वाष्पोत्सर्जन होता है।
2. उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (Cuticular Transpiration):-
पादपों की बाह्य त्वचा के ऊपर उपत्वचा या उपचर्म (Cuticle) होती है, जो वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करती है, परन्तु लगभग 5-10% जल का ह्रास उपचर्म से भी होता है। उपचर्म क्यूटिन (Cutin) नामक पदार्थ से बनी मोमीय परत होती है, जो पत्तियों की सतह एवं शाकीय स्तम्भों पर पाई जाती है। मोटी उपचर्म होने पर वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
3. वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Lenticular Transpiration):-
कुछ काष्ठीय तनों में तथा फलों में वातरन्ध्र (Lenticle) पाए जाते हैं। वातरन्ध्र बहुत छोटे छिद्र होते हैं। इनके द्वारा लगभग 1% वाष्पोत्सर्जन हो जाता है।
रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Stomatal Transpiration):-
उपरोक्त से स्पष्ट है, कि वाष्पोत्सर्जन के विभिन्न प्रकारों में रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन द्वारा अधिकतम जल ह्रास होता है तथा यह वाष्पोत्सर्जन का सबसे प्रमुख प्रकार है। रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन पादपों की पत्तियों में उपस्थित विशेष संरचनाओं द्वारा होता है, जिन्हें रन्ध्र (Stomata) कहते हैं। ये रन्ध्र पादपों की पत्तियों की सतह में उपस्थित छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, जो गुर्दे (Kidneys) या सेम के बीज के आकार को बाह्य त्वचीय कोशिकाओं से घिरे होते हैं, जिन्हें द्वार या रक्षक कोशिकाएँ (Guard cells) कहते हैं।
द्वार कोशिकाएँ जीवित, हरितलवकयुक्त तथा केन्द्रकयुक्त होती हैं। इनके चारों ओर उपस्थित बाह्य त्वचीय कोशिकाओं को उपकोशिका या गौण कोशिका (Subsidiary cells or accessory cells) कहते हैं। द्वार कोशिका की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। रन्ध्रों की अनुप्रस्थ काट देखने पर द्वार कोशिकाओं के ठीक नीचे एक अधोरन्ध्रीय गुहा ( Substomatal cavity) दिखाई देती है, जोकि गौण कोशिकाओं में खाली स्थान होने के कारण उपस्थित होती है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया रन्ध्रों के खुलने पर होती है।
रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने की क्रियाविधि (Mechanism of Opening and Closing of Stomata):—
रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन की दर रन्ध्रों के खुलने और बन्द होने पर निर्भर करती है तथा रन्ध्रों का खुलना एवं बन्द होना द्वार कोशिकाओं की स्फीति (Tugidity) पर निर्भर करता है, जब ये कोशिकाएँ स्फीत (Turgid) होती हैं, तो रन्ध्र खुला रहता है तथा जब कोशिकाएँ श्लथ (Flaccid ) होती हैं, तो रन्ध्र बन्द हो जाता है। द्वार कोशिकाओं का स्फीति व श्लथ होना कुछ प्रक्रियाओं की श्रृंखला के परिणामस्वरूप होता है। ये प्रक्रियाएँ दिन और रात में अलग-अलग प्रकार से द्वार कोशिकाओं को प्रभावित करती हैं।
इन प्रक्रियाओं एवं इनके प्रभाव को हम निम्न प्रकार समझ सकते हैं
दिन के समय (During Day):—
दिन के समय जब द्वार कोशिकाओं की को प्रकाश-संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है, तो द्वार कोशिकाओं का माध्यम क्षारीय (Alkaline) हो जाता है, जिसके कारण इन कोशिकाओं में उपस्थित मण्ड (Starch) ग्लूकोस में बदल जाता है तथा द्वार कोशिकाओं (Guard cells) की सान्द्रता में वृद्धि हो जाती है।
अन्ततः द्वार कोशिकाएँ आस-पास की कोशिकाओं से परासरण (Osmosis) द्वारा जल ग्रहण करके स्फीत हो जाती हैं एवं उसकी अन्दर वाली मोटी भित्ति बाहर की तरफ खिंच जाती है और रन्ध्र खुल जाते हैं।
रात के समय (During Night):—
रात के समय जब प्रकाश-संश्लेषण नहीं होता है, तब द्वार कोशिकाओं में श्वसन के कारण को की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण इनका माध्यम अम्लीय (Acidic) हो जाता है। इस अम्लीय माध्यम में कोशिकाओं में उपस्थित शर्कराएँ मण्ड में बदल जाती हैं और द्वार कोशिकाओं की सान्द्रता कम हो जाती है। इन कम सान्द्रता वाली द्वार कोशिकाओं में जल समीपवर्ती कोशिकाओं में विसरित हो जाता है और द्वार कोशिकाएँ श्लथ स्थिति में आ जाती हैं, जिससे रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।
सेयरे (Sayere) ने pH, शर्करा एवं मण्ड की मात्रा को द्वार कोशिका की स्फीति एवं श्लथ अवस्था से जोड़ते हुए प्रयोग किया, जिसके अनुसार, pH की मात्रा बढ़ने से मण्ड की मात्रा कम तथा शर्करा (ग्लूकोस) की मात्रा बढ़ जाती है और द्वार कोशिका स्फीति अवस्था में आ जाती है तथा रन्ध्र खुल जाते हैं, जबकि PH की मात्रा कम होने से द्वार कोशिका श्लथ दशा में आ जाती है तथा रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। अन्ततः उन्होंने निष्कर्ष निकाला, कि रन्ध्रों का खुलना एवं बन्द होना निम्न अभिक्रिया पर आधारित है।
फॉस्फोरिलेज की उपस्थित में
मण्ड + फॉस्फेट ‹======›ग्लूकोस फॉस्फेट
PH=5
नोट:
• रन्ध्रों की लम्बाई लगभग 20-27 nm तथा चौड़ाई 4-5 nm होती है। पत्ती के प्रति इकाई क्षेत्रफल में इनकी संख्या 2000-5000 तक हो सकती है।
• कीटभक्षी पादपों में रन्ध्र अनुपस्थित होते हैं जैसे मोनोट्रोपा, ड्रोसेरा, आदि तथा शुष्कोद्भिद् पादपों में अत्यधिक जल हानि को रोकने के लिए भैंसे हुए रन्ध्र पाए जाते हैं।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Transpiration ):—
पादपों में वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारकों को दो वर्गों में बाँट सकते हैं
1. बाह्य कारक या वातावरणीय कारक(External or Environmental Factors):—
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारक निम्न हैं
(i) वायुमण्डलीय आर्द्रता (Atmospheric Humidity) :—
वायु की आर्द्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है तथा आर्द्रता घटने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
(ii) वायु की गति (Velocity of Air) :—
वायु गति जितनी अधिक होगी वाष्पोत्सर्जन की दर भी अधिक होगी, परन्तु अत्यधिक तेज हवा चलने पर रन्ध्र बन्द हो जाते हैं एवं वाष्पोत्सर्जन की दर भी गिर जाती है।
(iii) तापमान (Temperature) :—
वायुमण्डलीय ताप में वृद्धि होने के कारण वायु की आर्द्रता कम हो जाती है तथा वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। तापमान कम होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
(iv) प्रकाश तीव्रता (Intensity of Light):—
प्रकाश की तीव्रता में वृद्धि के साथ तापमान में वृद्धि एवं वायुमण्डलीय आर्द्रता कम हो जाती है, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
(v) वायु दाब (Air Pressure) वायु दाब कम होने पर वायु की जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता अधिक हो जाती है, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
2. आन्तरिक कारक (Internal Factors):—
पादपों में वाष्पोत्सर्जन करने वाले अंगों में रूपान्तरण वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित कर देते हैं। ये रूपान्तरण चूँकि पादप की संरचना में हो रहे हैं। अतः हम इन्हें वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले आन्तरिक कारक बोलते हैं। वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करने वाले कुछ कारक निम्न हैं
(i) उपचर्म (Cuticle) का मोटा होना।
(ii) बाह्य त्वचा पर रोम (Hair), श्लक (Scales), आदि का उपस्थित होना।
(iii) बाह्य त्वचा का बहुस्तरीय होना ।
(iv) रन्ध्रों की संख्या अथवा घनत्व में कमी होना।
(v) रन्ध्रों की संरचना में अन्तर जैसे धँसे हुए रन्ध्रों (Sunken stomata) का उपस्थित होना।
(vi) पत्ती का छोटा होना, काँटों में बदल जाना, मुड़ जाना या विशेष मौसम में गिर जाना।
(vii) पत्ती के ऊतकों में विशेष कलिल (Colloidal) पदार्थों (जैसे-गम, रेजिन, आदि) का उपस्थित होना।
(vii) तने में द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप कॉर्क (Cork), छाल (Bark), आदि का बन जाना।
वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व(Importance of Transpiration):—
पादप के लिए वाष्पोत्सर्जन निम्न कारणों से आवश्यक होता है।
(i) ताप का नियमन (Control of Temperature):—
वाष्पोत्सर्जन के कारण जल की वाष्प बनती है, जिससे ठण्डक पैदा होती है। अतः पादप तेज गर्मी में झुलसने से बच जाते हैं।
(ii) खनिज लवणों की प्राप्ति (Obtaining of Minerals) :—
पादपों में जल अवशोषण के साथ ही खनिज लवणों का भी अवशोषण होता है। अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण ही अधिक जल अवशोषित होता है, जिसके साथ अधिक खनिज लवण की आवश्यकता की भी पूर्ति होती है।
(iii) अतिरिक्त जल का निस्तारण (Conveying of Extra Water) :—
मूलरोम लगातार भूमि से जल अवशोषित करते हैं। इनमें परासरण व अन्तः चूषण क्रिया सतत होने के कारण अधिक जल का जमाव हो सकता है। अतः पादप वाष्पोत्सर्जन द्वारा इसका सन्तुलन बनाए रखते हैं।
(iv) वाष्पोत्सर्जन तथा रसारोहण (Transpiration and Ascent of Sup) :—
वाष्पोत्सर्जन के चूषण दाब ( Suction pressure) उत्पन्न होता है, जी रसारोहण के लिए अतिआवश्यक है।
(v) फलों में शर्करा की सान्द्रता (Concentration of Sugar in Fruita) :—
अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण फलों में शर्करा की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिससे वे अधिक मीठे हो जाते हैं।
वाष्पोत्सर्जन एक अनिवार्य अहित है(Transpiration is a Necessary Evil):—
कुछ वैज्ञानिकों जैसे कर्टिस (Curtis) एवं स्टीवार्ट (Stewart) का मत है, कि वाष्पोत्सर्जन एक अनिवार्य अहित है। इनके अनुसार पत्ती की संरचना में उपस्थित रन्धों का प्राथमिक कार्य प्रकाश-संश्लेषण के लिए गैसीय विनिमय है। न कि वाष्पोत्सर्जन और नहीं इनके खुलने या बन्द होने से जल हास का नियन्त्रण होता है।
आसान शब्दों ,में जब प्रकाश-संश्लेषण के दौरान CO2 के विनिमय के लिए जब रंध्र खुलते हैं, तो वाष्पोत्सर्जन व जलवाष्प की प्रवणता (Gradient) की दिशा में स्वतः ही होता है, जिसको नियन्त्रित कर पाना लगभग असम्भव है। इसी कारण इस प्रक्रिया द्वारा होने वाले जल का ह्रास काफी ज्यादा है तथा अनियन्त्रित है। यह वास्तविकता है, कि मूल से पत्तियों तक अवशोषित जल व खनिज के पहुँचने का मुख्य स्रोत वाष्पोत्सर्जन ही है, परन्तु यदि अवशोषण एवं वाष्पोत्सर्जन में सन्तुलन नहीं है, तो पादप मुरझा जाते हैं और उनकी मृत्यु भी हो सकती है।
उदाहरण के लिए कम आर्द्रता और अधिक तापमान वाले दिनों (गर्मियों) में अधिकतर पादप दोपहर बाद मुरझा जाते हैं, क्योंकि दिनों में वाष्पोत्सर्जन अधिक व अवशोषण कम होता है। ठीक इसी प्रकार ये ही पादप रात्रि में पुनः खड़े हो जाते हैं, क्योंकि अब वाष्पोत्सर्जन कम होने के कारण वाष्पोत्सर्जन एवं अवशोषण में सन्तुलन पुनः स्थापित हो जाता हैं।
वाष्पोत्सर्जन का प्रदर्शन(Demonstration of Transpiration):—
एक गमले में लगे स्वस्थ पादप को जिसमें पत्तियाँ अधिक हों, अच्छी तरह पानी से सींच लेते हैं। इसकी मृदा और गमले को रबड़ अथवा पॉलीथीन की चादर से पूरी तरह ढक देते हैं। गमले को काँच की प्लेट पर रखकर बेलजार से ढक देते हैं। बेलजार के आधार पर ग्रीस लगाकर उपकरण को वायुरुद्ध (Air tight) कर देते हैं तथा उपकरण को धूप में रख देते हैं। कुछ समय के बाद बेलजार की भीतरी सतह पर पानी की छोटी-छोटी बूँदे दिखाई देने लगती हैं। ये बूँदें वाष्पोत्सर्जन द्वारा मुक्त हुई जलवाष्प के संघनन का परिणाम होती हैं। इस प्रयोग से सिद्ध होता है, कि पादप के वायवीय अंगों से जलवाष्प निकलती है, जो संघनित होकर जल की बूँदों के रूप में एकत्र हो जाती है। इससे स्पष्ट होता है। कि पादप में वाष्पोत्सर्जन होता है।
नोट :—गैनांग पोटोमीटर (Ganong potometer) के द्वारा वाष्पोत्सर्जन की दर ज्ञात- करते हैं।
वाष्पोत्सर्जन की क्रिया वाष्पन (वाष्पीकरण) से अलग है। वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन में मुख्य अन्तर निम्न हैं
वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन में अन्तर:–
वाष्पन | वाष्पोत्सर्जन |
---|---|
यह एक भौतिक क्रिया है, जो किसी भी मुक्त सतह पर सम्भव है। | यह एक जैविक क्रिया है, जो सभी पादपों में सम्पन्न होती है। |
यह जीवित अथवा निर्जीव सतह पर भी हो सकता हैं। | यह जीवित कोशिकाओं में ही सम्पन्न होता है। |
इससे ताप नियन्त्रण नहीं होता है। | इसके द्वारा पादपों के शरीर का ताप नियन्त्रण होता है। |
इससे सतह शुष्क हो जाती है। | इससे पत्तियों तथा तरूण स्तम्भ की सतह नम हो जाती हैं, जो इन्हें सूर्य के प्रकाश से जलने से बचाती हैं। |
यह अवशोषण तथा रसारोहण क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं रखता हैं। | यह पादपों में खनिज-लवण का अवशोषण तथा रसारोहण में सहायक है। |
बिन्दुस्रावण (Guttation):—
पादप पर लगी पत्तियों से बूँदों के रूप में जल का स्राव, बिन्दुस्रावण कहलाता है। यह क्रिया मुख्यतया शाकीय पादपों में तीव्र अवशोषण एवं कम वाष्पीकरण की स्थिति में सम्पन्न होती है। इस प्रक्रिया में जल जलरन्ध्र (Water stomata or hydathodes) के द्वारा बाहर निकलता है। ये जलरन्ध्र पत्तियों के मध्य शिरा के निकट विद्यमान होते हैं, जो जीवन पर्यन्त तक दिन-रात खुले रहते हैं।
बिन्दुस्रावण में जल का स्राव जाइलम तत्वों से उत्पन्न दाब के कारण होता है, यह मूलदाब (Root pressure) के समान होता है। बिन्दुस्रावण में स्रावित जल शुद्ध नहीं होता। वरन् यह तनु लवणीय विलयन होता है। बिन्दुस्रावण की क्रिया अधिकाशतयाः टमाटर, बन्दगोभी, घास, आदि में होती है।
नोट :—बिन्दुस्रावण क्रिया के फलस्वरूप निकलने वाले जल में ग्लूकोस, फ्रक्टोस, थाइमीन जैसे कार्बनिक पदार्थों के साथ Na, K, Fe, Mg, आदि अकार्बनिक पदार्थ भी होते हैं।
वाष्पोत्सर्जन एवं बिन्दुस्रावण में अन्तर:-
वाष्पोत्सर्जन | बिन्दुस्रावण |
---|---|
वाष्पोत्सर्जन पादप की वायवीय सतह से रन्ध्र एवं वातरन्ध्र से होने वाली क्रिया है। | बिन्दुस्रावण जलरन्ध्रो से होने वाली एक निश्चित क्रिया है। |
इस प्रक्रिया में जल वाष्प के रूप में विसरित होता है। | इसमें जल कोशिका रस के रूप में उत्सर्जित होता है। |
इसके कारण उत्पन्न वाष्पोत्सर्जनाकर्षण के कारण जल का मूलों द्वारा निष्क्रिय अवशोषण होता है। | यह क्रिया जड़ के मूलदाब के कारण होती है। |
अन्तराकोशिकीय स्थानों में, जो जलवाष्प संचित होती है, वहीं रन्ध्रो द्वारा विसरित होती है। | जाइलम वाहिकाओं के खुले सिरों से कोशिका रस तरल रूप में पत्तियों के शीर्ष , आदि से निकलता दिखाई देता है। |
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