देखी बिपुल बिकल बैदेही।
निमिष बिहात कलप सम तेहि।।
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा।
मुए करइ का सुधा तड़ागा।।
का बरसा सब कृषी सुखाने।
समय चुके पुनि का पछिताने।।
अस जिएं जानि जानकी देखी।
प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी।।
संदर्भ:–
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।
प्रसंग:–
उपरोक्त पद्यांश में श्री राम को सीता जी की व्याकुलता का बोध हो जाने का मनमोहक वर्णन किया गया है।
व्याख्या:–
कवी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम ने सीताजी को अत्यंत व्याकुल देखा तो उन्होंने अनुभव किया कि उनका एक क्षण एक-एक कल्प के समान बीत रहा था। तभी श्रीराम ने एक पल का भी विलंब किए बिना धनुष भंग करने का निर्णय किया, क्योंकि यदि कोई प्यासा व्यक्त पानी ना मिलने पर शरीर त्याग दे तो उसकी मृत्यु के पश्चात अमृत के तालाब का कोई औचित्य नहीं । जिस प्रकार खेतों के सूख जाने पर वर्षा का होना व्यर्थ है। उसी प्रकार किसी कार्य के होने का उचित समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ है? जब श्रीराम ने सीता जी को देखा और अपने प्रति विशेष प्रेम को मन ही मन जानकर प्रभु राम अत्यंत प्रसन्न हुए।
काव्य गत सौंदर्य
भाषा–अवधी। शैली –प्रबंध और सूक्तिपरक
गुण– माधुर्य । रस –श्रृंगार और अद्भुत
छंद–दोहा । शब्द शक्ति –अभिधा और लक्षणा
अलंकार– अनुप्रास अलंकार।
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