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लखन लखेउ रघुबंसमनि, ताकेउ हर कोदंडु। पुलकि गात बोले बचन, चरन चापि ब्रह्मांडु।।

 लखन लखेउ रघुबंसमनि, ताकेउ हर कोदंडु।

पुलकि गात बोले बचन, चरन चापि ब्रह्मांडु।।


संदर्भ:–

 प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।

 प्रसंग :–

प्रस्तुत पद्यांश में लक्ष्मण का श्री राम को देखकर आनंदित होने का वर्णन किया गया हैहै। यहां लक्ष्मण का श्री राम के प्रति स्नेह और उनकी स्वयं की बलवत्ता का वर्णन किया गया है ।


व्याख्या:–

 तुलसीदास जी कहते हैं कि जब लक्ष्मणजी ने देखा कि रघुकुल मणि श्रीराम शिव जी के धनुष को खंडित करने की दृष्टि से देख रहे हैं, तो उनका शरीर आनंदित हो उठा। शिव धनुष के खंडन से ब्रह्मांड में उथल-पुथल ना हो जाए; इसलिए लक्ष्मण जी ने अपने चरणों से ब्रह्मांड को दबा लिया।


 काव्यगत सौंदर्य

 भाषा –अवधि।   शैली –प्रबंध 

गुण –ओज ।       रस –वीर 

 छंद–दोहा ।      अलंकार –अनुप्रास अलंकार

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